आपका राज्य यदि आने वाले समय में मुफ्त अनाज या अन्य रियायती योजनाओं में कटौती कर दे तो चौंकिएगा नहीं। क्योंकि राज्य को जनसुविधाओं पर भारी भरकम खर्च के लिए जिस पैसे की जरूरत होती है, वह उसे पहले से अधिक कीमत पर मिल रहा है। सामान्य शब्दों में कहें तो आप होम या कार लोन के लिए जितनी ब्याज दरों पर किस्ते भरते हैं, राज्यों को भी इतनी ही कीमत अदा करनी पड़ रही है।
ताजा रिपोर्ट के अनुसार राज्यों के लिये बाजार से कर्ज जुटाने की औसत लागत ताजा नीलामी में 0.12 प्रतिशत बढ़ गई है। और यह 7.84 प्रतिशत पर पहुंच गई है। जबकि होमलोन की दरों की बात करें तो यह भी करीब 8 से 8.30 प्रतिशत है। हालांकि केंद्र के ब्याज दरों में फिलहाल कोई कटौती या बढ़ोत्तरी नहीं की गई है। केंद्र के लिए ब्याज की दर स्थिर रही है। लगातार चार सप्ताह तक बढ़ने के बाद 18 अक्टूबर को हुई नीलामी में राज्यों के कर्ज की लागत 0.11 प्रतिशत घटकर 7.72 प्रतिशत रह गई थी।
इक्रा रेटिंग्स की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि कर्ज की भारांश औसत लागत (कट ऑफ) 0.12 प्रतिशत बढ़कर 7.84 प्रतिशत हो गयी जो पिछली नीलामी में 7.72 प्रतिशत थी। भारांश औसत अवधि 12 साल से बढ़कर 13 साल होने से कर्ज लागत बढ़ी है।
बॉन्ड की ताजा नीलामी में 14 राज्यों ने 25,200 करोड़ रुपये जुटाए जो इस सप्ताह के लिये निर्धारित राशि (24,500 करोड़ रुपये) से तीन प्रतिशत अधिक है। चालू वित्त वर्ष में यह दूसरी सबसे बड़ी नीलामी थी। कुल मिलाकर 24 राज्यों ने 3.5 लाख करोड़ रुपये जुटाए हैं जो एक साल पहले के स्तर की तुलना में छह प्रतिशत कम है।
जनकल्याण की योजनाओं पर चल सकती है कैंची
महंगा कर्ज राज्यों की वित्तीय स्थिति को प्रभावित करता है। राज्य अपनी आय का अधिकतर हिस्सा जनकल्याणकारी योजनाओं पर खर्च करते हैं। कोरोना में मुफ्त अनाज और वैक्सीन के चलते राज्यों के खाते गड़बड़ा गए हैं। घाटा बढ़ रहा है। जिसके चलते राज्यों की साख गिर रही है और राज्यों को महंगा कर्ज मिल रहा है।
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