क्या होती है हिंदू वृद्धि दर? जिस पर खुद SBI के निशाने पर आ गए पूर्व RBI गवर्नर रघुराम राजन
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने दो दिन पहले एक साक्षात्कार में कहा था कि जीडीपी वृद्धि के आंकड़े इसके खतरनाक रूप से हिंदू वृद्धि दर के बेहद करीब पहुंच जाने के संकेत दे रहे हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन अपने तीखे बयानों के चलते काफी चर्चा में रहते हैं। लेकिन हाल ही में राजन ने भारत की मौजूदा वृद्धि दर को ‘हिंदू वृद्धि दर’ के बराबर बताया था। राजन ने यह बयान क्या दिया, खुद उनके मातहत काम करने वाले बैंकों ने उन्हें घेरना शुरू कर दिया। एसबीआई रिसर्च की एक रिपोर्ट ने भारत की मौजूदा वृद्धि दर को ‘हिंदू वृद्धि दर’ के बेहद करीब बताने वाले रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के बयान को ‘पक्षपातपूर्ण, अपरिपक्व और बिना सोचा-समझा हुआ’ बताते हुए खारिज कर दिया।
एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट ‘इकोरैप’ कहती है कि देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर के हाल में आए आंकड़े और बचत एवं निवेश के उपलब्ध आंकड़ों को देखने पर इस तरह के बयानों में कोई आधार नजर नहीं आता है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, ‘‘तिमाही आंकड़ों के आधार पर जीडीपी वृद्धि को लेकर व्याख्या करना सच्चाई को छिपाने वाले भ्रम को फैलाने की कोशिश जैसा है।’
क्या होती है हिंदू वृद्धि दर
‘हिंदू वृद्धि दर’ शब्दावली का इस्तेमाल 1950-80 के दशक में भारत की 3.5 प्रतिशत की औसत वृद्धि दर के लिए किया गया था। भारतीय अर्थशास्त्री राज कृष्णा ने सबसे पहले 1978 में ‘हिंदू वृद्धि दर’ शब्दावली का इस्तेमाल किया था। देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई की शोध टीम की तरफ से जारी रिपोर्ट में राजन के इस दावे को नकार दिया गया है। रिपोर्ट कहती है, ‘‘तिमाही आंकड़ों के आधार पर किसी भी गंभीर व्याख्या से परहेज करना चाहिए। जीडीपी वृद्धि के हालिया आंकड़ों और बचत एवं निवेश संबंधी परिदृश्य को देखते हुए हमें इस तरह की दलीलें ‘पक्षपातपूर्ण, अपरिपक्व और बिना सोची-समझी’ लगती हैं।’’
क्या कहा था राजन ने
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने दो दिन पहले एक साक्षात्कार में कहा था कि जीडीपी वृद्धि के आंकड़े इसके खतरनाक रूप से हिंदू वृद्धि दर के बेहद करीब पहुंच जाने के संकेत दे रहे हैं। उन्होंने इसके लिए निजी निवेश में गिरावट, उच्च ब्याज दरों और धीमी पड़ती वैश्विक वृद्धि जैसे कारकों को जिम्मेदार बताया था।
आंकड़े कुछ और बयां करते हैं
एसबीआई के समूह मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने इस रिपोर्ट को तैयार किया है। घोष ने कहा है कि बीते दशकों के निवेश एवं बचत आंकड़े कई दिलचस्प पहलू रेखांकित करते हैं।
- सरकार की तरफ से सकल पूंजी सृजन (जीसीएफ) वित्त वर्ष 2021-22 में 11.8 प्रतिशत हो गया जबकि 2020-21 में यह 10.7 प्रतिशत था।
- निजी क्षेत्र के निवेश पर भी प्रभाव पड़ा और यह इस दौरान 10 प्रतिशत से बढ़कर 10.8 प्रतिशत पर पहुंच गया।
- वित्त वर्ष 2022-23 में कुल मिलाकर सकल पूंजी सृजन के बढ़कर 32 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है। पिछले वित्त वर्ष में यह 30 प्रतिशत और उसके पहले 29 प्रतिशत रहा था।
- सकल बचत भी वित्त वर्ष 2021-22 में बढ़कर 30 प्रतिशत हो गई जो उसके एक साल पहले 29 प्रतिशत थी।
- चालू वित्त वर्ष में इसके 31 प्रतिशत से अधिक रहने का अनुमान है जो 2018-19 के बाद का सर्वोच्च स्तर होगा।
- रिपोर्ट कहती है, कि भारतीय अर्थव्यवस्था की संभावित वृद्धि दर पहले की तुलना में अब कम रहेगी।
- देश की जीडीपी वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में घटकर 4.4 प्रतिशत पर आ गई। एनएसओ ने चालू वित्त वर्ष में वृद्धि दर के सात प्रतिशत पर रहने का अनुमान जताया है।