रूस यूक्रेन युद्ध: आप नहीं करते कार या बाइक का इस्तेमाल, फिर भी 25 प्रतिशत बढ़ने वाले हैं आपके खर्चे
रूस यूक्रेन युद्ध से सिर्फ तेल ही नहीं, खाने-पीने खेती गैस सीमेंट ऐसी फ्रिज की महंगाई से 25 प्रतिशत तक बढ़ेंगे आपके खर्चे
Highlights
- कच्चे तेल का सीधा असर यूं तो आपकी जेब पर पेट्रोल डीजल के रूप में पड़ता है
- यह युद्ध देश में खेतीबाड़ी, सीमेंट वाहन उद्योग से लेकर इंडस्ट्री के लिए आफत बनकर आया
- युद्ध लंबा खिंचने से कच्चा तेल इस साल के अंत तक 185 डॉलर पर भी पहुंच सकता है
नई दिल्ली। भारत से रूस और यूक्रेन की दूरी भले ही 4000 किमी. से ज्यादा है। लेकिन यूक्रेन पर रूस के हमले की आंच भारत को भी झुलसा रही है। युद्ध की घोषणा के बाद से बीते 9 दिनों में कच्चा तेल 90 से 95 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 120 डॉलर तक बढ़ चुका है। जेपी मॉर्गन की रिपोर्ट की मानें तो युद्ध लंबा खिंचने से कच्चा तेल इस साल के अंत तक 185 डॉलर पर भी पहुंच सकता है।
कच्चे तेल का सीधा असर यूं तो आपकी जेब पर पेट्रोल डीजल के रूप में पड़ता है। लेकिन यह युद्ध देश में खेतीबाड़ी, सीमेंट वाहन उद्योग से लेकर कंज्यूमर ड्यूरेबल इंडस्ट्री के लिए आफत बनकर आया है। इससे किसानों के लिए खाद्यान्न पैदा करना मुश्किल होगा। वहीं कारखानों को कच्चा माल बहुत महंगा पड़ेगा। यानि कि चौतरफा आफत बस आपके दरवाजे पर दस्तक देने ही वाली है।
देश में पेट्रोल डीजल की कीमतें नवंबर से फ्रीज हैं। नवंबर में क्रूड 75 डॉलर प्रति बैरल पर मिल रहा था। जो कि अब 115 डॉलर पर है। इसमें लगातार उफान आ रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार मौजूदा परिस्थिति में 1 डॉलर कीमत बढ़ने से पेट्रोल की कीमतों में 70 पैसे का उफान आ सकता है। ऐसे में यदि क्रूड नवंबर के मुकाबले 35 से 40 रुपये महंगा होता है तो कीमतों में 25 से 30 रुपये का इजाफा हो सकता है। भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है। ऐसे में रुपये में गिरावट और कच्चे तेल की सप्लाई में बाधा भारत के लिए बहुत ही बुरी खबर है।
घर बनाना महंगा
कच्चे तेल में उफान से आपके घर के सपने पर वज्रपात हो सकता है। ईंधन खर्च बढ़ने से सीमेंट महंगा होगा। सीमेंट कंपनियों के कुल ऑपरेटिंग कॉस्ट में पावर और फ्यूल का खर्च 25 से 30 फीसदी है। वहीं कच्चे माल के रूप में कच्चे तेल के बायप्रोडक्ट यूज करने वाली पेंट इंडस्ट्री भी परेशान हैं। पेंट इंडस्ट्री सिर्फ मकान बनाने से ही नहीं बल्कि इलेक्ट्रानिक्स से लेकर वाहन उद्योग में भी मदद करती है। यानि कि महंगाई का असर चौतरफा होगा।
अप्रैल से गैस की कीमतें हो सकती हैं डबल
दुनियाभर में अभी गैस की भारी किल्लत है और अप्रैल में इसका असर भारत में देखने को मिल सकता है। इससे देश में गैस की कीमत दोगुना हो सकती है। सीएनजी (CNG), पीएनजी (PNG) और बिजली की कीमतें बढ़ जाएगी। घरेलू इंडस्ट्रीज पहले ही आयातित एलएनजी (LNG) के लिए ज्यादा कीमत चुका रही है। इसकी वजह लॉन्ग टर्म कॉन्ट्रैक्ट्स हैं जहां कीमत कच्चे तेल से जुड़ी हुई हैं। लेकिन इसका असली असर अप्रैल में देखने को मिलेगा जब सरकार नेचुरल गैस की घरेलू कीमतों में बदलाव करेगी।
खाना पीना महंगा
रूस-यूक्रेन युद्ध से ग्लोबल सप्लाई चेन पर दबाव बढ़ गया हैै। यूक्रेन दुनिया भर में 80 प्रतिशत सूरजमुखी तेल का निर्यात करता है। वहीं दुनिया में गेहूं के उत्पादन में यूक्रेन और रूस की 14 फीसदी हिस्सेदारी है। दुनियाभर में कुल गेहूं निर्यात में इन दोनों देशों की 29 फीसदी हिस्सेदारी है। इससे दुनियाभर में गेहूं की कीमत बढ़ सकती है। रूस दुनिया में गेहूं का सबसे बड़ा उत्पादक है जबकि यूक्रेन मक्के का तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक है।
शराब भी महंगी
बीयर जौ से बनती है और यूक्रेन दुनिया में सबसे ज्यादा जौ उपजाने वाले पांच टॉप देशों में शामिल है। यूक्रेन में चल रही जंग के कारण जौ की ग्लोबल सप्लाई प्रभावित हो सकती है। इससे बीयर की कीमत में इजाफा हो सकता है।
इलेक्ट्रॉनिक सामान और गाड़ियां होंगी महंगी
मार्केट रिसर्च ग्रुप Techce की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की चिप इंडस्ट्री C4F6, नियॉन और पैलडियम के लिए काफी हद तक रूस और यूक्रेन पर निर्भर है। सेमीकंडक्टर बनाने में इनका व्यापक इस्तेमाल होता है। अमेरिका की सेमीकंडक्डर इंडस्ट्री में इस्तेमाल होने वाला 90 फीसदी नियॉन यूक्रेन से आता है। रूस दुनिया में पैलेडियम का सबसे बड़ा सप्लायर है।
खेती करना होगा महंगा
दुनिया में दो तिहाई अमोनियम नाइट्रेट का उत्पादन रूस में होता है। रूस दुनिया में इसका सबसे बड़ा निर्यातक है। इसकी आपूर्ति बाधित होने से दुनियाभर में फसलों का उत्पादन महंगा होगा। इससे खाद्य महंगाई के बढ़ने की आशंका है। अमेरिका में खाद्य महंगाई छह फीसदी के ऊपर पहुंच गई है। भारत यूक्रेन से बड़ी मात्रा में रासायनिक खाद का आयात करता है।
कॉपर एल्युमिनियम निकेल पर भी आफत
रूस के पास दुनिया का करीब 10 फीसदी कॉपर भंडार है। साथ ही उसके पास एल्युमिनियम और निकेल का छह फीसदी भंडार है। कार उत्पादन में एल्युमिनियम का इस्तेमाल होता है जबकि इलेक्ट्रिक कार बैटरी में निकेल की जरूरत होती है। ये दोनों धातुएं एक दशक के उच्चतम स्तर पर है।