अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया मंगलवार को 79.36 प्रति डॉलर के अपने सर्वकालिक निचले स्तर पर बंद हुआ। विदेशों में डॉलर के कमजोर होने तथा पूंजी बाजार से विदेशी संस्थागत निवेशकों की सतत निकासी से रुपये की धारणा प्रभावित हुई। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 79.04 पर खुला। कारोबार के दौरान इसने 79.02 के उच्चतम स्तर और 79.38 रुपये के निम्नतम स्तर को छुआ। कारोबार के अंत में रुपया अपने पिछले बंद भाव 78.95 रुपये प्रति डॉलर के मुकाबले 41 पैसों की भारी गिरावट के साथ 79.36 रुपये प्रति डॉलर (अस्थायी) पर बंद हुआ।
डॉलर के मजबूत होने से बढ़ी कमजोरी
शेयरखान बाय बीएनपी पारिबा के शोध विश्लेषक अनुज चौधरी ने कहा कि डॉलर के मजबूत होने और उम्मीद से कमजोर घरेलू आर्थिक आंकड़ों के कारण भारतीय रुपया मंगलवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले नए रिकॉर्ड निचले स्तर को छू गया। दुनिया की छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूती को परखने वाला डॉलर सूचकांक 0.89 प्रतिशत बढ़कर 106.07 पर पहुंच गया।
कहां तक टूट सकता है रुपया?
बैंक ऑफ अमेरिका के अनुसार, कच्चे तेल और माल की बढ़ती कीमतों के कारण भारतीय रुपया साल के अंत तक 81 प्रति डॉलर तक टूट सकता है। इस साल अब तक भारतीय रुपया 6% से अधिक लुढ़क चुकी है। कच्चे तेल कीमतों में तेजी ने रुपया को कमजोर करने का काम किया है। भारत अपनी जरूरत का लगभग 80% कच्चा तेल आयात करता है।
रुपये में कमजोरी का क्या असर?
भारत तेल से लेकर जरूरी इलेक्ट्रिक सामान और मशीनरी के साथ मोबाइल-लैपटॉप समेत अन्य गैजेट्स आयात करता है। रुपया कमजोर होने के कारण इन वस्तुओं का आयात पर अधिक रकम चुकाना पड़ रहा है। इसके चलते भारतीय बाजार में इन वस्तुओं की कीमत में बढ़ोतरी होगी। वहीं, कच्चे तेल का आयात भी भारत करता है। इससे कच्चा तेल का आयात भी महंगा होगा। यानी आने वाले दिनों में कच्चे तेल के दाम बढ़ सकते हैं। भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी कच्चा तेल विदेशों से खरीदता है। इसका भुगतान भी डॉलर में होता है और डॉलर के महंगा होने से रुपया ज्यादा खर्च होगा। इससे माल ढुलाई महंगी होगी, इसके असर से हर जरूरत की चीज पर महंगाई की और मार पड़ेगी।
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