रिलायंस कैपिटल के अधिग्रहण का मामला फिर उलझ गया है। दरअसल, राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) ने टॉरेन्ट ग्रुप की याचिका पर कर्ज में फंसी रिलायंस कैपिटल लि.की ऋण शोधन प्रक्रिया पर मंगलवार को रोक लगा दी। सूत्रों ने कहा कि गुजरात के टॉरेन्ट समूह ने इस याचिका में हिंदुजा समूह की तरफ से संशोधित बोली लगाए जाने को चुनौती दी है। याचिका पर सुनवाई करते हुए एनसीएलटी मुंबई ने ऋणशोधन प्रक्रिया पर रोक लगा दी। ई-नीलामी में टॉरेन्ट समूह 8,640 करोड़ रुपये की पेशकश के साथ सबसे बड़ी बोलीदाता के रूप में उभरा जबकि हिंदुजा समूह की बोली 8,110 करोड़ रुपये रही।
हिंदुजा समूह ने 9000 करोड़ की बोली लगाई
हालांकि ई-नीलामी के अगले दिन हिंदुजा समूह ने अपनी पेशकश को संशोधित कर 9,000 करोड़ रुपये कर दिया। टॉरेन्ट ने अपनी याचिका में दावा किया कि ई-नीलामी के बाद हिंदुजा समूह की तरफ से संशोधित पेशकश करना गलत और अवैध है। एनसीएलटी ने प्रशासक से टॉरेन्ट समूह के आवेदल पर जवाब देने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई अगले सप्ताह होगी। इस बीच, आरसीएल के कर्जदाताओं की मंगलवार को हुई बैठक में टॉरेन्ट समूह और हिंदुजा समूह दोनों की बोलियों पर चर्चा की गयी। रिलायंस कैपिटल के बड़े कर्जदाताओं एलआईसी और ईपीएफओ की पहल पर यह ई-नीलामी की गई। इन दोनों की सीओसी में सम्मिलित हिस्सेदारी 35 प्रतिशत है। यह पहला मौका है जब दिवाला और ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के तहत किसी एनबीएफसी (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी) के लिए ई-नीलामी की गयी थी।
एलआईसी और ईपीएफओ की पहल पर नीलामी
रिलायंस कैपिटल के बड़े कर्जदाताओं एलआईसी और ईपीएफओ की पहल पर यह ई-नीलामी की गई है। इन दोनों की सीओसी में सम्मिलित हिस्सेदारी 35 प्रतिशत है। राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) ने रिलायंस कैपिटल की कर्ज समाधान प्रक्रिया पूरा करने के लिए 31 मार्च, 2023 तक का समय तय किया हुआ है। यह समयसीमा पहले ही बढ़ाई जा चुकी है।
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