भारत में सड़कों और इमारतों के निर्माण में आने वाली है बड़ी टेंशन, क्या टाटा समूह की बात पर गौर करेगी सरकार
Delhi NCR, मुंबई और बेंगलुरु जैसे प्रमुख शहरों में, भूमि लागत परियोजना लागत के प्रतिशत में से लगभग 50 प्रतिशत से 80-85 प्रतिशत बैठती है।
नए भारत के निर्माण में इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास की बड़ी भूमिका है। लेकिन निर्माण की बढ़ती लागत सरकार के साथ ही निजी कंपनियों के गले की फांस बनती जा रही है। देश की प्रतिष्ठित रियल एस्टेट कंपनियेां में से एक टाटा रियल्टी ने इस आर सरकारका ध्यान आकर्षित किया है। कंपनी ने कहा है कि जमीन, पूंजी और निर्माण की ऊंची लागत के साथ-साथ अन्य आर्थिक अनिश्चितताओं के कारण भारत में रियल एस्टेट परियोजनाओं का विकास आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं रह गया है।
टाटा रियल्टी एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के प्रबंध निदेशक (एमडी) एवं मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) और टाटा हाउसिंग के प्रमुख संजय दत्त ने कहा कि सरकार और न्यायपालिका को उन सभी अंशधारकों को जवाबदेह बनाना चाहिए जो चीजों को आसान बनाने के लिए रियल एस्टेट परियोजना के अनुमोदन और विकास के काम में शामिल हैं। उन्होंने कहा कि रियल एस्टेट परियोजनाएं गैर-लाभप्रद होने के कगार पर हैं।
परियोजनाओं को गैर-लाभप्रद बनाने वाले कारकों के बारे में पूछे जाने पर, दत्त ने कहा, ‘‘रियल एस्टेट को भारत में बहुत अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है, सबसे पहले भूमि का अधिग्रहण करने के लिए। एनसीआर, मुंबई और बेंगलुरु जैसे प्रमुख शहरों में, यह (भूमि लागत) परियोजना लागत के प्रतिशत में से लगभग 50 प्रतिशत से 80-85 प्रतिशत बैठती है।’’
उन्होंने बताया कि परियोजना को डिजाइन करने और निर्माण और विपणन गतिविधियों को शुरू करने के लिए सभी नियामकीय अनुमोदन प्राप्त करने में दो-तीन साल लगते हैं। उन्होंने कहा कि डेवलपर्स मौजूदा लागत के आधार पर परियोजनाओं को शुरु करते हैं, लेकिन 5-6 साल की निर्माण अवधि के दौरान यह लागत काफी बढ़ सकती है। उन्होंने कहा कि बिल्डरों को निर्माण सामग्री की लागत में वृद्धि और बाकी चीजों की लागत का बोझ उठाने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
उन्होंने कहा कि बिल्डरों को नियमों में लगातार समय-समय पर होने वाले बदलाव का भी सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि बिल्डरों को ‘‘कुछ वैश्विक संकट, कुछ आर्थिक संकट, कुछ राजनीतिक संकट" से भी निपटना पड़ता है, जो किसी भी रियल एस्टेट परियोजना के निर्माण चक्र के 5-6 वर्षों में होता है। दत्त ने कहा कि रियल एस्टेट परियोजनाओं को विकसित करने में ‘‘काफी जोखिम और अनिश्चितताएं’’ हैं और परियोजना को समय पर पूरा करने की पूरी जिम्मेदारी डेवलपर्स पर है। उनका मानना है कि सरकार सभी अंशधारकों को जवाबदेह बनाने पर विचार कर सकती है। इससे चीजें काफी सुधर सकती हैं।