नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के वृद्धि दर अनुमान को 7.8 प्रतिशत से घटाकर 7.2 प्रतिशत कर दिया है। आसमान छूती महंगाई के बीच यह एक बुरी खबर है। अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी होने से रोजगार सृजन से लेकर कारोबारी गतिविधियां पर असर होगा। इससे आने वाले दिनों में नौकरियों के अवसर कम होंगे। साथ ही सरकार को राजस्व का नुकसान होगा।
क्यों घटाया जीडीपी ग्रोथ का अनुमान
आरबीआई ने रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से कच्चे तेल की कीमतों में आए उछाल और आपूर्ति श्रृंखला से जुड़ी अड़चनों की वजह से अर्थव्यवस्था के वृद्धि दर अनुमान घटाया है। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने शुक्रवार को चालू वित्त वर्ष की पहली द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा बैठक की घोषणा करते हुए कहा कि पिछले दो महीनों में ‘बाहरी’ घटनाक्रमों की वजह से घरेलू वृद्धि के नीचे जाने और महंगाई के ऊपर जाने का जोखिम पैदा हुआ है। दास ने कहा, वित्त वर्ष 2022-23 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वास्तविक वृद्धि दर 7.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है।
चौथी तिमाही में विकास दर चार प्रतिशत रहेगी
पहली तिमाही में यह 16.2 प्रतिशत, दूसरी में 6.2 प्रतिशत, तीसरी में 4.1 प्रतिशत और चौथी तिमाही में यह चार प्रतिशत रहेगी। उन्होंने कहा कि यह अनुमान इस धारणा पर आधारित है कि 2022-23 में भारत द्वारा खरीदे जाने वाले कच्चे तेल का औसत दाम 100 डॉलर प्रति बैरल रहेगा। इससे पहले इसी साल जनवरी में पेश की गई आर्थिक समीक्षा में वित्त वर्ष 2022-23 में आर्थिक वृद्धि दर के 8-8.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था।
उपभोक्ताओं और कारोबारी भरोसा सकारात्मक हुआ रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा कि महामारी से संबंधित पाबंदियों में ढील दिए जाने के बाद मार्च में हवाई यातायात की स्थिति सुधरी है। उन्होंने कहा, हमारे सर्वे के अनुसार उपभोक्ताओं का भरोसा सुधर रहा है और परिवारों का परिदृश्य बेहतर हुआ है। दास ने कहा कि कारोबारी भरोसा सकारात्मक हुआ है और यह आर्थिक गतिविधियों के पुनरुद्धार को समर्थन दे रहा है। उन्होंने कहा कि रबी सत्र की फसल अच्छी रहेगी जिससे ग्रामीण मांग में सुधार होगा। वहीं संपर्क-गहन सेवा क्षेत्रों की स्थिति में सुधार से शहरी मांग मजबूत होगी। रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को प्रमुख नीतिगत दर रेपो को चार प्रतिशत पर कायम रखा है।
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