श्रमिकों, छोटे व्यापारियों और किसानों के लिए शुरू की गई प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना पड़ी सुस्त, पंजीकृत लोगों की संख्या घटी
वित्त वर्ष 2019-20 के अंतरिम बजट में पांच साल में इस पेंशन योजना से असंगठित क्षेत्र के करीब 10 करोड़ श्रमिकों के जुड़ने की उम्मीद जतायी गयी थी। उसके मुकाबले अबतक पंजीकृत श्रमिकों और कामगारों की संख्या काफी कम है।
सरकार की श्रमिकों, छोटे व्यापारियों और किसानों के लिये जोर-शोर से शुरू की गयी महत्वाकांक्षी पेंशन योजनाएं अब सुस्त पड़ती जा रही हैं। इसमें न केवल पंजीकृत व्यक्तियों की संख्या कम हुई है बल्कि बजट आवंटन भी या तो स्थिर बना हुआ है अथवा उसमें गिरावट आई है। पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने बजट पर लिखी अपनी नई पुस्तक में यह दावा किया है। सरकार ने 2019-20 के अंतरिम बजट में अर्थव्यवस्था में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले 42 करोड़ लोगों के योगदान की सराहना करते हुए प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना शुरू की थी। श्रमिकों के लिये पेंशन कार्यक्रम श्रम योगी मानधन योजना सरकार की प्रमुख कल्याणकारी योजनाओं में शामिल है। वित्त मंत्री ने उस समय अपने बजट भाषण में कहा था, ‘‘हमारी सरकार 15,000 रुपये तक मासिक आय वाले असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिये बड़ी पेंशन योजना शुरू करने का प्रस्ताव करती है। यह पेंशन योजना उन्हें छोटी राशि का योगदान कर 60 वर्ष की आयु से 3,000 रुपये मासिक पेंशन की गारंटी देगी।’’
60 साल की उम्र तक 100 रुपये प्रतिमाह का योगदान
बजट प्रस्ताव के अनुसार, इस पेंशन योजना के तहत 29 साल के कामगार को 60 साल की उम्र तक 100 रुपये प्रतिमाह का योगदान देना होगा। वहीं 18 वर्ष के कामगार को योजना से जुड़ने के लिये 55 रुपये प्रतिमाह का योगदान देना होगा। सरकार उतनी ही राशि कर्मचारी के पेंशन खाते में हर महीने जमा करेगी। गर्ग ने ‘एक्सप्लैनेशन एंड कॉमेन्टरी ऑन बजट 2023-24’ शीर्षक से लिखी पुस्तक में दावा किया है, ‘‘श्रम योगी मानधन योजना (2019-20) के पहले साल में अच्छी संख्या में श्रमिक और कामगार आकर्षित हुए। योजना के तहत 31 मार्च, 2020 की स्थिति के अनुसार 43,64,744 श्रमिक पंजीकृत हुए। लेकिन बाद में योजना को लेकर असंगठित क्षेत्र के कामगारों की रुचि कम होती गयी। वित्त वर्ष 2020-21 में केवल 1,30,213 कामगार पंजीकृत हुए और इससे कुल पंजीकृत श्रमिकों और कामगारों की संख्या बढ़कर 44,94,864 हो गयी।’’ उन्होंने लिखा है, ‘‘वित्त वर्ष 2021-22 में 1,61,837 कामगार योजना में पंजीकृत हुए। इससे पंजीकृत कामगारों की संख्या 31 मार्च, 2022 तक बढ़कर 46,56,701 पहुंच गयी।
कामगारों ने पंजीकरण रद्द कराना शुरू किया
ऐसा लगता है कि उसके बाद जनवरी, 2023 से कामगारों ने पंजीकरण रद्द कराना शुरू कर दिया।’’ श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के डैशबोर्ड के अनुसार, जनवरी, 2023 को 56,27,235 पहुंचने के बाद पंजीकृत कामगारों की संख्या में कमी आई और यह मार्च, 2023 में 44,00,535 पर आ गयी। वित्त वर्ष 2019-20 के अंतरिम बजट में पांच साल में इस पेंशन योजना से असंगठित क्षेत्र के करीब 10 करोड़ श्रमिकों के जुड़ने की उम्मीद जतायी गयी थी। उसके मुकाबले अबतक पंजीकृत श्रमिकों और कामगारों की संख्या काफी कम है। इसके अलावा सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में 2019-20 के पूर्ण बजट में 1.5 करोड़ सालाना से कम कारोबार वाले तीन करोड़ खुदरा कारोबारियों, छोटे दुकानदारों और अपना कारोबार करने वाले व्यक्तियों के लिये पेंशन योजना प्रधानमंत्री कर्म योगी मानधन योजना शुरू की। साथ ही छोटे और सीमांत किसानों के लिये प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना शुरू की गयी।
तीनों पेंशन योजनाएं एक तरह से निष्क्रिय हो गयी
श्रम मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार, कर्मयोगी मानधन योजना में 30 अप्रैल, 2023 की स्थिति के अनुसार 52,472 छोटे कारोबारी और दुकादार जुड़े। वहीं पीएम किसान मानधन योजना के तहत 19,44,335 किसान जुड़े जो पीएम किसान सम्मान निधि का लाभ लेने वाले कृषकों का केवल 2.5 प्रतिशत है। वित्त वर्ष 2021-22 और 2022-23 के बजट में की गयी घोषणाओं के परिणामों की जानकारी देने वाली इस किताब में लिखा गया है, ‘‘ये तीनों पेंशन योजनाएं एक तरह से निष्क्रिय हो गयी हैं। ऐसा लगता है कि सरकार ने भी इन योजनाओं को छोड़ दिया है। सरकार की तरफ से योजनाओं को लोकप्रिय बनाने के लिये कोई बड़ा प्रयास नहीं दिख रहा है।’’ उन्होंने पुस्तक में लिखा है, ‘‘तीनों योजनाओं को लेकर सरकार का बजटीय आवंटन भी स्थिर है या फिर इसमें कमी आ रही है। श्रम योगी मानधन के मामले में बजटीय आवंटन 325 करोड़ रुपये से लेकर 350 करोड़ रुपये के बीच स्थिर है। वहीं किसान मानधन योजना के मामले में यह 50 करोड़ रुपये से 100 करोड़ रुपये के बीच है। ऐसा लगता है कि कर्म योगी मानधन योजना को सरकार ने छोड़ ही दिया है। इसके लिये 2022-23 में जहां संशोधित अनुमान में 10 करोड़ का आवंटन था, वह 2023-24 में घटकर केवल तीन करोड़ रुपये रह गया।’’