देश में शांति व्यवस्था बनाने के लिए सरकार कई बार दूरसंचार कंपनियों को इंटरनेट बंद करने के लिए कहती है। लेकिन जब संसदीय कमेटी ने सरकार से इस बारे में टेलिकॉम विभाग से इसकी जानकारी मांगी तो वह बगलें झांकने लगा। संसद की एक समिति ने बार-बार इंटरनेट को बंद करने के मामलों पर चिंता जाहिर करते हुए दूरसंचार विभाग की खिंचाई की है।
समिति ने कहा है कि दूरसंचार विभाग ने इंटरनेट को बंद करने संबंधी (शटडाउन) मामलों का कोई ब्योरा नहीं रखा और साथ ही उसकी कई सिफारिशों पर कदम नहीं उठाया। संचार और सूचना प्रौद्योगिकी पर स्थायी समिति ने बृहस्पतिवार को लोकसभा में ‘दूरसंचार और इंटरनेट सेवाओं का निलंबन और उसके प्रभाव’ पर रिपोर्ट लोकसभा में रखी।
समिति ने दूरसंचार विभाग से कहा है कि वह गृह मंत्रालय के साथ मिलकर इंटरनेट को बंद करने के बाद उसे हटाने की प्रक्रिया पर काम करे। समिति ने ‘शटडाउन’ का लेखा-जोखा नहीं रखने पर दूरसंचार विभाग और गृह मंत्रालय के तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि वह यह नहीं बोल सकता कि ‘पुलिस और कानून व्यवस्था सरकार के विषय हैं और इंटरनेट का निलंबन अपराध के दायरे में नहीं आता है।
समिति ने कहा कि इंटरनेट बंदी के सभी मामलों का केंद्रीयकृत डाटाबेस दूरसंचार विभाग, गृह मंत्रालय के पास उसी तर्ज पर रखा जाना चाहिए जैसे गृह मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) अपराधों पर नियमित आधार पर सूचना जुटाता है। इनमें सांप्रदायिक दंगे भी शामिल हैं। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जून, 2012 से मार्च, 2021 के बीच देशभर में सरकार द्वारा 518 बार इंटरनेट को बंद किया गया। यह दुनिया में इंटरनेट को ब्लॉक करने का सबसे ऊंचा आंकड़ा है।
हालांकि, दूरसंचार विभाग और गृह मंत्रालय के पास इन आंकड़ों की पुष्टि का कोई तंत्र नहीं है। उनके पास राज्यों द्वारा इंटरनेट को बंद करने आदेशों का कोई ब्योरा नहीं है। समिति ने दूरसंचार विभाग और गृह मंत्रालय को देशभर में इंटरनेट बंद करने के आदेशों को डाटाबेस तैयार करने का निर्देश दिया है।
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