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Hindi News पैसा बिज़नेस Nepal Economic Crisis: नेपाल को ले डूबे ये 5 कारण, क्या श्रीलंका की तरह भारत का ये पड़ौसी भी कंगाली की राह पर?

Nepal Economic Crisis: नेपाल को ले डूबे ये 5 कारण, क्या श्रीलंका की तरह भारत का ये पड़ौसी भी कंगाली की राह पर?

देश का विदेशी मुद्रा भंडार 10 अरब डॉलर के स्तर से भी नीचे गिर गया है। हालांकि, सरकार ने आश्वासन दिया था कि देश की अर्थव्यवस्था श्रीलंका की तरह गर्त में नहीं जाएगी।

<p>Nepal Economic Crisis  </p>- India TV Paisa Image Source : FILE Nepal Economic Crisis  

श्रीलंका में जारी गंभीर आर्थिक संकट के बीच भारत के एक और पड़ौसी की ओर से बदहाली की खबरें आ रही हैं। हिमालय की गोद में बसा नेपाल इस समय गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है। खाने पीने से लेकर हर जरूरी सामान के लिए भारत एवं दूसरे देशों पर निर्भर नेपाल का सरकारी खजाना पूरी तरह से खाली पड़ चुका है। हालत यह है कि देश के केंद्रीय बैंक के गर्वनर महा प्रसाद अधिकारी को निलंबित कर दिया है। देश में वाहनों और अन्य महंगी या लग्जरी वस्तुओं के आयात पर रोक लगा दी गई है। 

देश का विदेशी मुद्रा भंडार 10 अरब डॉलर के स्तर से भी नीचे गिर गया है। हालांकि, सरकार ने आश्वासन दिया था कि देश की अर्थव्यवस्था श्रीलंका की तरह गर्त में नहीं जाएगी। नेपाल राष्ट्र बैंक (एनआरबी) के प्रवक्ता गुणाखार भट्ट के अनुसार, ‘‘हमें अर्थव्यवस्था में किसी तरह के संकट के संकेत नजर आ रहे हैं जो मुख्यत: आयात बढ़ने की वजह से हैं। इसलिए हम उन वस्तुओं के आयात को रोकने पर विचार कर रहे हैं जिनकी तुरंत आवश्यकता नहीं है।’’ आइए जानते हैं नेपाल की बदहाली के पीछे क्या प्रमुख कारण हैं। 

पाकिस्तान और श्रीलंका के बाद अब नेपाल का भी खजाना खाली, अर्थिक संकट के बीच उठाया ये कदम

आयात का बढ़ता बोझ

नेपाल वास्तव में एक आयात केंद्रित देश है। देश में उत्पादन ​गतिविधियां बेहद सीमित हैं। सोयाबीन तेल के उद्योग को छोड़ दें तो नेपाल अपनी जरूरत की सभी चीजों का आयात करता है। देश में पेट्रोल डीजल, दाल चावल,नमक जैसी मूलभूत आवश्यकताओं से लेकर महंगी कारों और इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का जमकर निर्यात होता है। इसके लिए विदेशी मुद्रा भंडार एक अहम जरूरत है। लेकिन नेपाल के विदेशी मुद्रा भंडार में जुलाई, 2021 से गिरावट आ रही है। वहीं कच्चे तेल की महंगाई ने रही बची कसर भी पूरी कर दी। केंद्रीय बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, फरवरी, 2022 तक देश का विदेशी मुद्रा का कुल भंडार 17 प्रतिशत घटकर 9.75 अरब डॉलर रह गया, जो जुलाई, 2021 के मध्य तक 11.75 अरब डॉलर था। 

कोरोना के बाद चौपट हुआ पर्यटन कारोबार

हिमालय की वादियों में बसा नेपाल दुनिया का एक प्रमुख पर्यटन केंद्र है। एवरेस्ट की चढ़ाई का सबसे मुफीद रास्ता नेपाल में ही है। देश की जीडीपी में भी पर्यटन से होने वाली आय का बहुत बड़ा योगदान है। यही सेक्टर देश के विदेशी मुद्रा भंडार को बेहद जरूरी डॉलर मुहैया कराता है। लेकिन 2020 में कोरोना वायरस के प्रकोप के बाद टूरिज्म कारोबार ठप है। दो साल से गिने चुने पर्यटक ही नेपााल पहुंच रहे हैं। बीते दो साल की बात करें तो सिर्फ पिछले महीने यानि मार्च 2022 में सबसे अधिक 42000 पर्यटक नेपाल पहुंचे हैं। 

चीन से नजदीकी ने भारत से बढ़ाई दूरी 

नेपाल परंपरागत रूप से भारत का निकट सहयोगी रहा है। लैंड लॉक कंट्री होने की वजह से नेपाल को भारत होते हुए सामान का आयात करना पड़ता है। लेकिन बीते एक दशक में नेपाल ने चीन के साथ नजदीकी बढ़ाई है। चीन नेपाल तक रेल लाइन बिछा रहा है। ऐसे में चीन से नजदीकी उसे भारत से दूर ले गई है। वहीं लिपुलेख जैसे सीमा विवाद ने कड़वाहट बढ़ाई है। इन परिस्थितियों के चलते भारत से सामान के आयात में रुकावट आती है। भारत से गेहूं चावल आदि का आयात करना सस्ता पड़ता है। वहीं भौगोलिक स्थिति के चलते चीन का सस्ता सामान भी नेपाल पहुंचकर महंगा हो जाता है। 

भूकंप के बाद पुनर्निर्माण 

नेपाल में 2015 में भीषण भूकंप आया था। इस भूकंप ने देश को भारी मात्रा में क्षति पहुंचाई थी। नेपाल का लगभग पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर तबाह हो गया था। पहले से ही वित्तीय मुश्किलें झेल रहा नेपाल इस भूकंप से कई साल पीछे चला गया। पुनर्निर्माण के लिए विदेशों से राहत तो मिली। लेकिन नेपाल को भी अपने प्रमुख संसाधन देश को फिर से खड़ा करने में लग गए। कोरोना संकट के बीच हालात और भी पेचीदा होते चले गए। 

नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता 

नेपाल में राजशाही के समाप्त होने के बाद से वहां राजनीतिक अस्थिरता का दौर भी शुरू हो गया है। 28 मई 2008 को नेपाल के इतिहास के राजवंश युुग का अंत हो गया। राजशाही के अंत के बाद लोगों ने वहां लोकतंत्र की बहाली की उम्मीद लगाई थी। लेकिन हुआ इसके बिल्कुल उलट। नेपाल के हाथ में इन दोनों में से कुछ नहीं आया। सरकारें बनती रहीं टूूटती रहीं। अब फिर नेपाल की संसद आम चुनावों के तीन वर्ष बाद भंग कर दी गई है। राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने बीते साल प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की संसद भंग कर दी है। सरकार बनाने और बचाने के खेल में चीन का हस्तक्षेप भी काफी बढ़ गया है। 

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