कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने बुधवार को ‘नंदिनी’ दूध की कीमतों में दो रुपये की बढ़ोतरी का बचाव किया। सीएम ने कहा कि दूध की बढ़ती खरीद के मद्देनजर किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए ऐसा किया गया है। उन्होंने दोहराया कि दूध की कीमतों में बढ़ोतरी नहीं की गई है। सिद्धरमैया ने कहा कि पिछले साल इसी समय के दौरान दूध (उत्पादन) 90 लाख लीटर (प्रतिदिन) था, अब यह 99 लाख लीटर से अधिक है। हमें किसानों से दूध खरीदना है, हम उन्हें मना नहीं कर सकते, दूध का उत्पादन होता है और इसे बाजार में बेचना होता है। इसलिए हमने आधा लीटर दूध के पैकेट की मात्रा 50 मिलीलीटर बढ़ा दी है। उन्होंने कहा कि मात्रा बढ़ा दी गई है और बढ़ी हुई मात्रा के अनुपात में कीमत भी बढ़ा दी गई है।
दिया ये तर्क
खबर के मुताबिक, आधे और एक लीटर के पैकेट में 50 मिलीलीटर वाले दूध पैकेट की कीमत 2.10 रुपये बैठती है और हमने केवल दो रुपये बढ़ाए हैं, हमने दूध की कीमत कहां बढ़ाई है? क्या हम उत्पादित दूध को फेंक सकते हैं? क्या हम किसानों से कह सकते हैं कि हम उनसे दूध नहीं खरीदेंगे? भाषा की खबर के मुताबिक, जब उनसे कहा गया कि कथित तौर पर रेस्तरां क्या कॉफी और चाय की कीमतें बढ़ाने की योजना बना रहे हैं, तो मुख्यमंत्री ने कहा कि वे कैसे बढ़ेंगे, वे तब बढ़ा सकते हैं जब दूध की कीमतें बढ़ेंगी। दूध की कीमतों में बढ़ोतरी ईंधन के दामों में वृद्धि के बाद हुई है।
विपक्ष सरकार पर है हमलावर
दूध के दाम पर विपक्ष (भाजपा) सरकार पर हमलावर है। उपमुख्यमंत्री डी के शिवकुमार ने कहा कि इस कदम का उद्देश्य किसानों को लाभ पहुंचाना है और कीमतों में और वृद्धि होनी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि इससे पता चलता है कि भाजपा किसान विरोधी है। बढ़ी हुई राशि उन किसानों को मिलेगी जो संकट में हैं। केएमएफ (कर्नाटक मिल्क फेडरेशन) एक किसान संगठन है, यह किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए है। उन्होंने कहा कि मेरे हिसाब से कीमतों में और बढ़ोतरी होनी चाहिए थी।
किसान संकट में हैं, वे अपने मवेशियों को बेच रहे हैं, उनकी देखभाल करने में असमर्थ हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा को किसानों के लाभ के लिए कीमतों में बढ़ोतरी की मांग करनी चाहिए थी। उन्होंने पार्टी से दूसरे राज्यों में दूध की कीमतों की तुलना करने को कहा।
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