देश में जन धन खाते की संख्या 53 करोड़ के पार निकल गई है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बात की जानकारी देते हुए बताया कि पिछले 10 वर्षों में गरीबों के लिए 53.13 करोड़ जन धन खाते खोले गए हैं। इनमें 2.3 लाख करोड़ रुपये जमा हैं। उन्होंने कहा कि पीएमजेडीवाई दुनिया की सबसे बड़ी वित्तीय समावेशन पहलों में से एक है। मार्च 2015 में प्रति खाते में औसत बैंक बैलेंस 1,065 रुपये था, जो अब बढ़कर 4,352 रुपये हो गया है। करीब 80 फीसदी खाते सक्रिय हैं। ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में 66.6 फीसदी जनधन खाते खोले गए हैं, इनमें से 29.56 करोड़ (55.6 फीसद) महिला खाताधारकों के हैं। वित्त मंत्री ने कहा कि 14 अगस्त, 2024 तक देश में 173 करोड़ से अधिक ऑपरेटिव चालू और बचत खाते हैं, इनमें 53 करोड़ से अधिक ऑपरेटिव पीएमजेडीवाई खाते शामिल हैं।
'बचत खाते' से कितना अलग जन-धन अकाउंट
जनधन खातों में और सामान्य बैंक बचत खाते में अंतर की बात करें तो इसमें एक लाख रुपए का दुर्घटना बीमा और 30 हजार रुपए का लाइफ कवर मिलता है। जनधन अकाउंट में मिनिमम बैलेंस रखने की कोई सीमा नहीं होती है। वहीं जनधन योजना में लाभार्थी को 10 हजार रुपये की ओवरड्राफ्ट की सुविधा भी खाते में मिलती है। इसके साथ ही जनधन अकाउंट खुलने के बाद लाभार्थी को रुपे डेबिट कार्ड भी मिलता है। इसके साथ ही जनधन अकाउंट आप बैंक के अलावा पोस्ट ऑफिस में भी खुलवा सकते हैं। इसके लिए पैन कार्ड और आधार कार्ड होना जरूरी है। इसके साथ ही जनधन खाते को ऑनलाइन माध्यम से भी खुलवाया जा सकता है।
2014 से की गई थी शुरुआत
2014 में जब नरेंद्र मोदी की सरकार बनी तो सबसे पहले यह फैसला लिया गया कि कैसे सामान्य से सामान्य लोगों को बैंकिंग व्यवस्था से जोड़ा जाए। सरकार इसके लिए आगे आई और प्रधानमंत्री जन-धन योजना की शुरुआत की। जिसके जरिए गरीब से गरीब लोगों का बैंक खाता जीरो बैलेंस पर खुल पाया। इसके बाद डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर यानी डीबीटी के जरिए सोशल सिक्योरिटी स्कीम्स का भी फायदा सीधे लाभर्थियों तक इसके जरिए पहुंचाया जा रहा है। वहीं किसान सम्मान निधि और नरेगा और मनरेगा जैसी परियोजनाओं के पैसे भी लोगों के खाते में सीधे पहुंचते रहे। वह भी इसी जन-धन अकाउंट की वजह से संभव हो पाया। जिसकी वजह से भ्रष्टाचार की गुंजाइश ही समाप्त हो गई और पहले बिचौलिये के जरिए हो रही धन की लूट भी अब समाप्त हो गई है।
इनपुट: आईएएनएस
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