वैश्विक झटकों के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत, आने वाले समय में महंगाई घटेगी: RBI
रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कहा कि देश की खुदरा मुद्रास्फीति जनवरी से लगातार संतोषजनक सीमा से ऊपर रहने के बाद अब नरम हुई है।
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने गुरुवार को कहा कि वैश्विक झटकों और चुनौतियों के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूती की तस्वीर पेश कर रही है। दास ने 26वीं वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट की भूमिका में लिखा है कि दुनिया के ज्यादातर देशों में मौद्रिक नीति सख्त किये जाने के साथ अंतरराष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था चुनौतीपूर्ण बनी हुई है और वित्तीय बाजारों में उथल-पुथल है। उन्होंने कहा कि खाद्य और ऊर्जा आपूर्ति तथा कीमतों पर दबाव है। कई उभरते बाजार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में कर्ज को लेकर दबाव की स्थिति बननी शुरू हो गयी है। प्रत्येक अर्थव्यवस्था विभिन्न चुनौतियों से जूझ रही है। दास ने कहा, ऐसे वैश्विक झटकों और चुनौतियों के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूती की तस्वीर पेश कर रही है। वित्तीय स्थिरता बनी हुई है। घरेलू वित्तीय बाजार स्थिर और पूरी तरह से काम कर रहे हैं। बैंक व्यवस्था मजबूत बनी हुई है और उनमें पर्याप्त पूंजी है।
खुदरा महंगाई काबू में आएगी
रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कहा कि देश की खुदरा मुद्रास्फीति जनवरी से लगातार संतोषजनक सीमा से ऊपर रहने के बाद अब नरम हुई है और इसे काबू में लाने के लिये जिस तत्परता से कदम उठाये गये हैं, उससे इसके और नीचे आने की उम्मीद है। आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है, आरबीआई ने मुद्रास्फीति को काबू में लाने के लिये तत्परता से कदम उठाये हैं। इससे मुद्रास्फीति के संतोषजनक दायरे और लक्ष्य के करीब आने की उम्मीद है। साथ ही इससे महंगाई को लेकर जो आशंकाएं हैं, उस पर भी लगाम लगेगी। आरबीआई ने कहा कि अमेरिकी डॉलर में मजबूती से आयात महंगा होने के कारण भी मुद्रास्फीति बढ़ती है। इससे खासकर उन जिंसों के दाम बढ़ते हैं, जिन वस्तुओं का आयात डॉलर में किया जाता है। रुपये की विनिमय दर में गिरावट से स्थानीय मुद्रा में जिंसों के दाम में तेजी अभी भी बनी हुई है और कई अर्थव्यवस्थाओं में यह औसतन पिछले पांच साल के मुकाबले ऊंची बनी हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, गरीब अर्थव्यवस्थाओं के लिये यह दोहरा झटका है। इससे एक तरफ जहां जिंसों के दाम बढ़ते हैं, वहीं दूसरी तरफ इससे मानवीय संकट भी पैदा होता है।
चालू खाते का घाटा बढ़कर जीडीपी के 4.4% पर
देश का चालू खाते का घाटा (कैड) सितंबर, 2022 में समाप्त चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4.4 प्रतिशत पर पहुंच गया। यह आंकड़ा इससे पहले अप्रैल-जून तिमाही में 2.2 प्रतिशत था। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा जारी आंकड़ों में यह जानकारी दी गई। आंकड़ों के मुताबिक उच्च व्यापार घाटे के चलते कैड बढ़ा है। आरबीआई ने कहा, भारत का चालू खाता संतुलन 2022-23 की दूसरी तिमाही में 36.4 अरब डॉलर (जीडीपी का 4.4 प्रतिशत) के घाटे में रहा। यह 2022-23 की पहली तिमाही में 18.2 अरब डॉलर (जीडीपी का 2.2 प्रतिशत) से अधिक है। एक साल पहले 2021-22 की दूसरी तिमाही में यह 9.7 अरब डॉलर (जीडीपी का 1.3 प्रतिशत) था। जुलाई-सितंबर 2022-23 में कैड बढ़ने की प्रमुख वजह उच्च व्यापार घाटा था। वस्तुओं का व्यापार घाटा 2022-23 की पहली तिमाही में 63 अरब डॉलर से बढ़कर दूसरी तिमाही में 83.5 अरब डॉलर हो गया।
बैंकों का कुल फंसा कर्ज सात साल में सबसे कम
भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा कि बैंकों का सकल एनपीए (गैर-निष्पादित परिसंपत्ति) यानी फंसा कर्ज सात वर्षों के निचले स्तर पांच प्रतिशत पर आ गया है। केंद्रीय बैंक ने कहा कि बैंक व्यवस्था मजबूत बनी हुई है और उनके पास पर्याप्त पूंजी है। एफएसआर में कहा गया कि आने वाले दिनों में एनपीए घटकर 4.9 प्रतिशत तक आ सकता है। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) की पूंजी स्थिति सितंबर 2022 में मजबूत थी। जोखिम भारित आस्तियों की तुलना में पूंजी अनुपात (सीआरएआर) और साझा इक्विटी पूंजी (सीईटी1) अनुपात क्रमश: 16 प्रतिशत और 13 प्रतिशत रहा। रिपोर्ट की प्रस्तावना में आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि केंद्रीय बैंक वैश्विक जोखिमों के चलते अस्थिरता की आशंका को पहचानता है।