भारत के पहले बजट को कोई भारतीय नहीं बल्कि पाकिस्तान के इस राजनेता ने किया था पेश, पढ़ें पूरी कहानी
लियाकत अली खान मोहम्मद अली जिन्ना के करीबी माने जाते थे। लियाकत अली खान देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान के पहले प्रधानमत्री बने। उन्होंने ने ही भारत का पहला बजट पेश किया था।
एक बार फिर बजट पेश करने की तैयारी शुरू हो गई है। हालांकि, आम चुनाव होने के कारण इस बार पूर्ण नहीं बल्कि अंतरिम बजट पेश किया जाएगा। क्या आपको पता है कि भारत का पहला बजट जो 2 फरवरी 1946 को पेश किया गया था, उसे कोई भारतीय नहीं बल्कि पाकिस्तानी राजनेता लियाकत अली खान ने पेश किया था। दरअसल लियाकत अली खान तब पंडित जवाहर लाल नेहरु के प्रधानमंत्रित्व में गठित अंतरिम सरकार में वित्त मंत्री थे। इसी हैसियत से उन्होंने बजट पेश किया था। वहीं, 1947 में देश की आजादी के बाद देश का पहला बजट 26 नवंबर 1947 को आर. के. षणमुगम शेट्टी ने पेश किया था।
2 फरवरी को पेश हुआ था बजट
लियाकत अली ने 2 फरवरी, 1946 को उस समय के लेजिस्लेटिव असेंबली भवन (आज के संसद भवन) में बजट पेश किया था। वे आल इंडिया मुस्लिम लीग के भी शीर्ष नेता थे और पाकिस्तान की स्थापना में उनका अहम योगदान रहा। पाकिस्तान की आजादी के बाद उन्हें वहां का पहला प्रधानमंत्री बनाया गया। आजादी से पूर्व जब अंतरिम सरकार का गठन हुआ तो मुस्लिम लीग ने उन्हें अपने नुमाइंदे के रूप में भेजा। उन्हें पंडित नेहरु ने वित्त मंत्रालय सौंपा था। आपको बता दें कि भारत का सबसे पहला बजट 18 फरवरी 1860 को एक अंग्रेज जेम्स विल्सन ने पेश किया।
बंटवारे से पहले यहां से लड़ चुके थे चुनाव
लियाकत अली खान मोहम्मद अली जिन्ना के क़रीबी माने जाते थे। लियाकत अली खान देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान के पहले प्रधानमत्री बने। वे देश के बंटवारे से पहले मेरठ और मुजफ्फरनगर से यूपी एसेंबली के लिए चुनाव भी लड़ते थे।
सहनी पड़ी थी आलोचना
लियाकत के बजट को पुअर मैन बजट नाम दिया गया। उन्होंने अपने बजट प्रस्तावों को ‘सोशलिस्ट बजट’ बताया था, लेकिन उन्हें बजट को लेकर उद्योगजगत की आलोचना सहनी पड़ी थी। लियाकत अली खान पर आरोप लगा कि उन्होंने कर प्रस्ताव बहुत ही कठोर रखे जिससे उनके हितों को चोट पहुंची। लियाकत अली पर ये भी आरोप लगे कि वे अंतरिम सरकार में हिन्दू मंत्रियों के खर्चो और प्रस्तावों को हरी झंडी दिखाने में खासा वक्त लेते हैं। सरदार पटेल ने तो यहां तक कहा था कि वे लियाकत अली खान काफी सख्त किस्म के इंसान थे। उनकी अनुमति के बगैर एक चपरासी की भी नियुक्त कोई नहीं कर सकता था।
लियाकत अली खान की हुई थी जबरदस्त आलोचना
लियाकत अली खान के बचाव में भी बहुत से लोग आगे आए थे। उनका तर्क था कि वे हिन्दू विरोधी नहीं हो सकते क्योंकि उनकी पत्नी गुल-ए-राना मूलत: हिन्दू परिवार से ही थीं। ये बात दीगर है कि उनका परिवार एक अरसा पहले ईसाई हो गया था। देश के विभाजन और मोहम्मद अली जिन्ना की मृत्यु के बाद लियाकत अली खान पाकिस्तान के निर्विवाद रूप से सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बन गए। उनकी 1951 में रावलपिंडी में एक सभा को संबोधित करने के दौरान गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। महत्वपूर्ण है कि जिस मैदान में खान की हत्या हुई थी उसी मैदान में दशकों बाद बेनजीर भुट्टो की भी हत्या हुई। 1951 में लियाक़त अली रावलपिंडी में एक सभा को संबोधित कर रहे थे, उसी वक्त उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।