Indian Banks NPA: भारतीय बैंकों की नॉन परफॉर्मिंग एसेट या खराब लोन में वित्तवर्ष 2022-23 में 0.90 प्रतिशत की कमी आने की संभावना है और इस दौरान यह घटकर पांच प्रतिशत से कम रह जाएगा। एसोचैम-क्रिसिल रेटिंग के अध्ययन में बृहस्पतिवार को यह अनुमान जताया गया। अध्ययन में यह भी कहा गया कि बैंकों का सकल एनपीए 31 मार्च 2024 तक घटकर दशक के सबसे निचले स्तर चार प्रतिशत से भी कम हो सकता है। अध्ययन ने सकल नॉन परफॉर्मिंग एसेट(NPA) में गिरावट के लिए कोविड बाद के आर्थिक सुधारों और उच्च ऋण वृद्धि को जवाबदेह बताया है। एनपीए को आप ऐसे समझ सकते हैं कि बैंको का कितना रुपया कर्ज के तौर पर फंस गया है, जो रिटर्न नहीं आ पा रहा है। उसी को नॉन परफॉर्मिंग एसेट कहा जाता है।
सबसे बड़ा सुधार कॉरपोरेट लोन में होगा
इसमें कहा गया कि सबसे बड़ा सुधार कॉरपोरेट लोन में होगा, जहां सकल एनपीए 31 मार्च 2018 को लगभग 16 प्रतिशत था और इसके अगले वित्त वर्ष में घटकर दो प्रतिशत तक होने की संभावना है। एसोचैम के महासचिव दीपक सूद ने कहा कि यह हाल के वर्षों में बैंकों द्वारा खातों को दुरुस्त करने के साथ ही मजबूत जोखिम प्रबंधन और अंडरराइटिंग को दर्शाता है, जिसके कारण बेहतर क्रेडिट प्रोफाइल वाले उधारकर्ताओं को ऊंची वरीयता मिली है। दोहरे बही-खाते की समस्या का काफी हद तक समाधान कर लिया गया है और ऐसे में ऋण वृद्धि में उल्लेखनीय सुधार देखने को मिला है। लगातार वैश्विक चुनौतियों के बीच भी हमारा बैंकिंग क्षेत्र काफी मजबूत है। अध्ययन में कहा गया कि महामारी के दौरान सबसे अधिक पीड़ित रहने वाले एमएसएमई खंड में सकल एनपीए मार्च 2024 तक बढ़कर 10-11 प्रतिशत हो सकता है, जो 31 मार्च 2022 को लगभग 9.3 प्रतिशत था।
पिछले पांच साल में इतने रुपये का फंसा है कर्ज
बैंकों ने पिछले पांच वित्त वर्षों के दौरान 10,09,511 करोड़ रुपये के कर्ज मिलता नहीं देखकर उसे बट्टे खाते में डाल दिया है। यानी, इस तरह के कर्ज की वसूली की उम्मीद बहुत ही कम हो जाती है। अगर इस रकम को देश में बन रहे एक्सप्रेस-वे की लागत से तौले तो भारत इतने रकम में 11,000 किलोमीटर लंबा एक्सप्रेस-वे बना देता। आपको बता दें कि 1 किमी एक्सप्रेस-वे बनाने की लागत करीब 9 करोड़ रुपये आती है।
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