देश भर में 28 जून के बाद आटा, ब्रेड-बिस्कुट हो सकते हैं सस्ते, कीमतों में कमी के लिए सरकार उठाने वाली है ये कदम
देश में रबी सीजन का खरीद कार्यक्रम अभी खत्म ही हुआ है, लेकिन इसके बावजूद गेहूं की कीमतें उफान भर रही हैं, अब सरकार कीमतें घटाने के लिए बड़ा कदम उठा रही है
रबी सीजन की फसल देश की मंडियों में आने के बाद भी गेहूं की कीमतें (Wheat Price) कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। इसकी वजह से गेहूं के दाम लगातार उच्च स्तर पर बने हुए हैं। इसे देखते हुए अब सरकार एक बड़ा कदम उठाने जा रही है। सरकार की अन्न भंडारण से जुड़ी एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (FCI) 28 जून से खुली बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के अंतर्गत ई-नीलामी की शुरुआत करने जा रही है। नीलामी के इस दौर में FCI तीन से पांच लाख टन गेहूं छोटे निजी खरीदारों को बेचने की उम्मीद है। इन छोटे खरीदारों में आटा मिल के अलावा ब्रेड और बिस्कुट निर्माता शामिल हैं। ऐसे में आटे के अलावा बिस्कुट (Biscuits) की कीमतों में भी राहत मिलने की उम्मीद है।
मार्च 2024 तक 15 लाख टन गेहूं बेचेगी सरकार
FCI के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक अशोक के मीणा ने बृहस्पतिवार को यह बात कही। उन्होंने संवाददाताओं से कहा, “हम 28 जून को हो रही पहली ई-नीलामी में तीन-पांच लाख टन गेहूं की बिक्री करेंगे। इसके लिए पंजीकरण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।” ओएमएसएस के अंतर्गत सरकार ने गेहूं की कीमतों पर नियंत्रण लाने के लिए मार्च, 2024 तक आटा मिल मालिकों के केंद्रीय पूल, निजी व्यापारियों, थोक खरीदारों और गेहूं उत्पादों के विनिर्माताओं को 15 लाख टन गेहूं बेचने का निर्णय लिया है।
इस कीमत पर होगी गेहूं की नीलामी
देशभर में 31 जनवरी तक गेहूं की आरक्षित कीमत अच्छी और औसत गुणवत्ता के लिए 2,150 रुपये प्रति क्विंटल और अपेक्षाकृत कम अच्छे (यूआरएस) किस्म के गेहूं के लिए 2,125 रुपये प्रति क्विंटल तय की गई है। चावल के मामले में नीलामी पांच जुलाई को शुरू होगी और क्षमता जरूरत के हिसाब से तय की जाएगी। चावल के लिए आरक्षित कीमत देशभर में 31 अक्टूबर, 2023 तक निजी लोगों के लिए 3,100 रुपये प्रति क्विंटल तय की गई है। खरीदार कम से कम 10 टन और अधिकतम 100 टन गेहूं एवं चावल के लिए बोली लगा सकते हैं। गेहूं और चावल ई-नीलामी के माध्यम से एफसीआई के देशभर में स्थित लगभग 500 भंडार गृहों से भेजा जाएगा।
रबी सीजन के बावजूद नहीं घट रहीं कीमतें
देश में अक्सर देखा गया है कि जब रबी और खरीफ के मौसम की फसलें मंडियों में पहुंचती हैं तो खुले बाजारों में गेहूं और चावल के अलावा अन्य अनाजों की कीमतों में कमी आती है। लेकिन इस बार ऐसा देखने को नहीं मिला है। अप्रैल में रबी की खरीद का कार्यक्रम शुरू होने के बाद भी गेहूं की कीमतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। खुले बाजारों में गेहूं की कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी अधिक है। ऐसे में इस बार सरकार का गेहूं खरीदी का लक्ष्य भी पिछड़ गया है। वहीं इस साल जनवरी फरवरी में जब कीमतें 3000 रुपये के पार निकल गई थीं तब भी सरकार को हस्तक्षेप करते हुए खुले बाजार में गेहूं की बड़ी खेप बेचनी पड गई थी।