झारखंड के किसान इस फसल की खेती से लाखों की कमाई कर रहे, अब सरकार ने बनाया यह प्लान
बीते अप्रैल महीने में झारखंड सरकार के कैबिनेट ने लाह की खेती को कृषि का दर्जा देने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है।
लाह की खेती ने झारखंड के बारह जिलों में किसानों को आत्मनिर्भरता की राह दिखाई है। कुछ इलाकों में लाह की सामुदायिक खेती से किसान सालाना लाखों में कमाई कर रहे हैं। रांची जिले के ओरमांझी प्रखंड के एक नवोन्मेषी किसान देवेंद्र नाथ ने तो अपने गांव के डेढ़ सौ किसानों को लाह की सामूहिक खेती से जोड़ लिया है। वे राज्य के दूसरे जिलों के किसानों को भी लाह की खेती से जोड़ने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। झारखंड सरकार के ग्रामीण विकास विभाग के अंतर्गत कार्यरत झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी का दावा है कि महिला किसान सशक्तिकरण योजना के तहत प्रदेश के 73000 से अधिक ग्रामीण परिवारों को लाह की वैज्ञानिक खेती से जोड़ा गया है।
इन चीजों में लाख का उपयोग
लाह का उपयोग मुख्य रूप से चूड़ी, गोंद, लहठी, क्रीम, विद्युत यंत्र बनाने, पॉलिश बनाने में, विशेष प्रकार की सीमेंट और स्याही बनाने, ठप्पा देने की स्टिक बनाने, और पॉलिशों के निर्माण आदी में होता है। इसके अलावा काठ के खिलौनों को रंगने और सोने, चांदी के आभूषण बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है। ओरमांझी के नवोन्मेषी किसान देवेंद्र नाथ बताते हैं कि उन्हें इतना तो पता था कि लाह की खेती झारखंड में अच्छी हो सकती है, लेकिन इसके तौर-तरीके का आइडिया उन्हें नहीं था। ऐसे में उन्होंने लाह की खेती का प्रशिक्षण हासिल करने की बात सोची और इसी कोशिश में पहुंच गये रांची के नामकुम स्थित भारतीय लाह अनुसंधान केंद्र, जिसे अब राष्ट्रीय द्वितीयक कृषि संस्थान के रूप में जाना जाता है।
कृषि का दर्जा देने के प्रस्ताव को मंजूरी दी
बीते अप्रैल महीने में झारखंड सरकार के कैबिनेट ने लाह की खेती को कृषि का दर्जा देने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। उम्मीद की जा रही है कि इससे राज्य में लाह उत्पादन में तेजी आएगी, साथ ही लाह की खेती करने वाले किसानों की आर्थिक स्थिति में बदलाव आएगा। अब किसानों को कम दाम पर या सब्सिडी पर मुफ्त में लाह का बीज दिया जाएगा। अब तक किसानों को विभिन्न संस्थाओं द्वारा ही लाह के बीज दिए जाते थे, लेकिन अब जब इसकी खेती को कृषि का दर्जा मिल गया है तो राज्य सरकार भी किसानों को मुफ्त में बीज देगी। सीएम हेमंत सोरेन ने पिछले दिनों कहा था कि राज्य सरकार जल्द ही लाह की फसल के लिए राज्य में एमएसपी भी लागू करेगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि झारखंड की लाह की चमक आने वाले दिनों में दुनिया को चमत्कृत करेगी।
पेड़-पौधों की रक्षा भी की जा रही
लाह की खेती से आमदनी तो बढ़ ही रही है साथ ही क्षेत्र के पेड़-पौधों की रक्षा भी की जा रही है। हसातु निवासी जुगनू उरांव कहते हैं कि देवेंद्रनाथ के सहयोग से हमलोग गांव में ही 7 एकड़ जमीन में लाह खेती कर रहे हैं और सालाना 3-4 लाख रुपए कमा रहे हैं। इसके साथ साथ पर्यावरण की रक्षा में भी योगदान दे रहे हैं। इसी तरह पश्चिमी सिंहभूम के गोइलकेरा प्रखंड के रुमकूट गांव की रंजीता देवी लाह की खेती से सालाना तीन लाख रुपये तक की कमाई कर रही हैं। झारखंड के जिन जिलों में लाह की खेती हो रही है, उनमें पाकुड़, पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम, गढ़वा, पलामू, देवघर, दुमका, गोड्डा, हजारीबाग, चतरा, रामगढ़, रांची, गुमला, लोहरदगा, सिमडेगा, खूंटी, गिरिडीह, धनबाद और बोकारो शामिल हैं। एक अनुमान के लिए लाह की खेती से जुड़े किसानों की कुल तादाद तकरीबन पांच लाख है। इनकी कुल आय में लाह की खेती का हिस्सा करीब 25 फीसदी बताया जाता है।
(इनपुट: आईएएनएस)