A
Hindi News पैसा बिज़नेस पिछले 20 सालों के निचले स्तर पर पहुंचा यूरो, पाउंड की हालत भी खराब, बिजनेस की भाषा में समझिए

पिछले 20 सालों के निचले स्तर पर पहुंचा यूरो, पाउंड की हालत भी खराब, बिजनेस की भाषा में समझिए

Euro Pound Value: पूरी दुनिया में मंदी की आशंका है। कुछ देशों में उसके असर भी देखे जाने लगे हैं। महंगाई (Inflation) बढ़ने लगी है। रोजगार (Job) में कमी आने लगी है।

पिछले 20 सालों के निचले...- India TV Paisa Image Source : INDIA TV पिछले 20 सालों के निचले स्तर पर पहुंचा यूरो

Highlights

  • 15 जुलाई 2002 को डॉलर के बराबर था यूरो
  • पूरी दुनिया में मंदी की आशंका है।
  • यूरो भी एक महीने में 1.03 डॉलर प्रति यूरो से कमजोर होकर आज 1.02 डॉलर पर आ गया है

Euro Pound Value: पूरी दुनिया में मंदी की आशंका है। कुछ देशों में उसके असर भी देखे जाने लगे हैं। महंगाई (Inflation) बढ़ने लगी है। रोजगार (Job) में कमी आने लगी है। उन देशों की करेंसी कमजोर होनी शुरु हो गई है। इस समय दुनिया की सबसे मजबूत करेंसी कही जाने वाली पाउंड और यूरो अपने बूरे दौर से गुजर रहे हैं। ब्रिटेन  (Britain) की करेंसी लगातार गिर रही है। यूएस डॉलर (USD) के मुकाबले पाउंड (Pound) कमजोर होता जा रहा है। यही हाल यूरो (EURO) का भी है। 

आज से ठीक एक महीने पहले यानि 10 अगस्त को एक पाउंड की कीमत 1.22 डॉलर हुआ करती थी जो आज 10 सितंबर को गिरकर 1.16 डॉलर प्रति पाउंड हो गई है। यूरो भी एक महीने में 1.03 डॉलर प्रति यूरो से कमजोर होकर आज 1.02 डॉलर पर आ गया है। इसका फायदा भारत को मिल रहा है और भारतीय रुपया पाउंड और यूरो के मुकाबले लगातार मजबूत हो रहा है। इसके पीछे की एक वजह यह भी है कि इस समय भारत की स्थिति बेहतर है और एक्सपर्ट का कहना है कि भारत में मंदी आने की कोई संभावना नहीं है।

पाउंड की तुलना में रुपया कितना हुआ है मजबूत

पिछले महीने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि भारतीय रुपया 2022 में ब्रिटिश पाउंड के मुकाबले मजबूत हुआ है। इसमें आगे और सुधार देखने को मिलेगा। इस समय 1 पाउंड की कीमत 92.41 रुपये है जो महीने भर पहले 5 अगस्त को 96.59 रुपये प्रति पाउंड थी। एक महीने में भारतीय रुपया पाउंड के मुकाबले में 4.18 रुपया मजबूत हुआ है। एक महीना पहले एक यूरो की कीमत 81.46 रुपये हुआ करती थी जो आज गिरकर 80.87 रुपये प्रति यूरो हो गई है।

Image Source : India TVडॉलर के मुकाबले पाउंड और यूरो की वैल्यू में आई गिरावट

यूरो अपने सबसे बुरे दौर में कैसे पहुंचा

यूरोप और लगभग पूरी दुनिया में कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण यूरोप के कई देश महंगाई का सामना कर रहे हैं। खासकर ऊर्जा क्षेत्र में रूस के तरफ से हाल ही में लिए गए नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन को पूरी तरह से बंद करने के निर्णय ने स्थिति को और भयावह बना दिया है। इस आदेश के बाद से यूरोप में गैस और तेल जैसे ऊर्जा स्रोतों की लागत में बढ़ोतरी आई है, जो EURO की वैल्यू को कम करने में एक महत्वपूर्ण भुमिका निभा रहे हैं। यूरोपीय संघ की सांख्यिकी एजेंसी द्वारा जारी किए जाने वाले आंकड़ों के अनुसार यूरोज़ोन की मुद्रास्फीति की वार्षिक दर जुलाई में बढ़कर 8.9% हो जाएगी, जो जून में 8.6% थी। बता दें, इस समय प्रति यूरो जो डॉलर की कीमत है वो पिछले 20 सालों का सबसे न्यूनतम स्तर है। अगर ये गिरावट जारी रही तो जल्द ही एक यूरो की कीमत डॉलर के बराबर हो जाएगी।

15 जुलाई 2002 को डॉलर के बराबर था यूरो

1 जनवरी 1999 को लॉन्च होने के तुरंत बाद यूरोपीय मुद्रा 1.18 डॉलर प्रति यूरो के अपने सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गई थी, लेकिन ज्यादा दिनों तक यह टिक नहीं सकी। फरवरी 2000 में यूरो की कीमत 1 डॉलर से भी कम हो गई और अक्टूबर आते-आते में 82.30 सेंट के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गई थी। फिर धीरे-धीरे स्थिति में सुधार हुआ और 15 जुलाई 2002 को यूरो एक डॉलर के बराबर पहुंच गई। उसके बाद से यूरो में इतनी गिरावट नहीं देखी गई जो आज देखी जा रही है।

पाउंड की हालत इतनी खराब क्यों?

यूके की राजनीति से लेकर यूके की अर्थव्यवस्था में इस समय अनिश्चितता का माहौल है। हाल ही में वहां चुनाव हुए हैं। नए पीएम बनाए जाएंगे। कहा जाता है कि बाजार में अगर आप मजबूती चाहते हैं तो अनिश्चितता को दूर करना होगा। इसकी दूसरी और यूरोपीय यूनियन से बाहर निकलना ब्रिटेन को भारी पड़ रहा है। इसका नुकसान ब्रिटेन के व्यापारियों को उठाना पड़ रहा है। उन्हें पहले की तुलना में अधिक टैक्स देना पड़ रहा है। पहले जब ब्रिटेन EU का हिस्सा था तब यूरोपीय यूनियन में शामिल किसी भी देश से व्यापार करने के लिए टैक्स नहीं देना पड़ता था। उससे उसकी अर्थव्यवस्था को काफी फायदा मिलता था जो अब बंद हो गया है। इस समय वहां महंगाई भी चरम पर है। लोगों को रोजगार कम मिल रही है। ये समस्या सिर्फ ब्रिटेन में ही नहीं बल्कि उसके अन्य पड़ोसी देशों में भी है।

Britain की महंगाई 40 साल के उच्चतम स्तर पर

Britain की महंगाई दर जुलाई में बढ़कर 40 साल के नए उच्चतम 10.1 प्रतिशत पर पहुंच गई। दरअसल, खाने-पीने के सामान के दाम बढ़ने और ऊर्जा कीमतों में बढ़ोतरी के चलते महंगाई में यह उछाल आया है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (ओएनएस) ने बुधवार को कहा कि उपभोक्ता मूल्यों पर आधारित मुद्रास्फीति दो अंकों में पहुंच गई है, जो जून में 9.4 प्रतिशत से अधिक थी। यह आंकड़ा विश्लेषकों के 9.8 प्रतिशत के पूर्वानुमान से अधिक है।

डॉलर क्यों हो रहा मजबूत?

डॉलर के लगातार मजबूत होने से दुनिया भर की करेंसी पर असर दिखने लगा है। रुबेल से लेकर पाउंड और यूरो की कीमतों में भी बदलाव देखा जा रहा है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण हैं अमेरिका द्वारा लगातार अपने नीतिगत फैसलों में उलटफेर करना। हाल ही में Fed ने भी 0.75 बेसिस प्वाइंट की टैक्स रेट में वृद्धि की थी। Fed अमेरिका का केंद्रीय बैंक है। टैक्स रेट में वृद्धि करने से दुनिया भर के इन्वेस्टर को अमेरिका आकर्षित करने लगा, क्योंकि अगर आप अमेरिका में पैसा इन्वेस्ट करते हैं तो आपको पहले की तुलना में ज्यादा रिटर्न मिलेगा। दूसरी सबसे बड़ी बात यह होगी कि इन्वेस्टर को करेंसी डॉलर में कंवर्ट भी नहीं करनी पड़ेगी। किसी भी देश में जब निवेश बढ़ता है तो उसकी अर्थव्यवस्था मजबूत होती है और इसका असर उस देश की करेंसी पर भी देखने को मिलता है। यही कारण है कि USD लगातार मजबूत होती जा रही है। 

जैसा कि हम जानते हैं कि अमेरिकी डॉलर एक वैश्विक मुद्रा है। दुनिया भर केंद्रीय बैंको में जो विदेशी मुद्रा भंडार है उसका 64% अकेले अमेरिकी डॉलर है। दुनिया भर में अधिकतर देश डॉलर में व्यापार करते हैं। यही सब कारण अमेरिकी डॉलर को और मजबूत बनाता है। इस समय दनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश अमेरिका है। उसके पास 25,350 अरब डॉलर की संपत्ति है।

Latest Business News