आपको तरोताजा करने वाली दार्जिलिंग की चाय खुद ‘ICU’ में, उद्योग के सामने खड़ा हुआ अस्तित्व का संकट
कारोबारियों के अनुसार दार्जिलिंग चाय उद्योग को जीवित रखने के लिए सब्सिडी के रूप में कुछ सरकारी सहायता की जरूरत है जो नेपाल से आने वाली चाय से उत्पन्न खतरे को दूर करने में मदद करेगी।
भारत में चाय एक आम भारतीय की दिनचर्या का हिस्सा है। लोग खुद को तरोताजा रखने के लिए दिन में कम से कम दो बार चाय तो पीते ही हैं। लेकिन लोगों को रिफ्रेश करने वाला चाय उद्योग खुद ही दर्द से कराह रहा है। भारतीय चाय निर्यातक संघ (आईटीईए) के चेयरमैन अंशुमन कनोरिया ने बृहस्पतिवार को कहा कि दार्जिलिंग चाय उद्योग ‘आईसीयू में भर्ती मरीज’ की तरह है और दम तोड़ रहा है। मौसम की मार के चलते चाय की राजधानी कहे जाने वाले दार्जिलिंग में उत्पादन घट रहा है। वहीं नेपाल से बढ़ रहे आयात ने उद्योग की कमर तोड़ दी है।
कोरोना के नुकसान से नहीं उबरी इंडस्ट्री
कारोबारियों के अनुसार दार्जिलिंग चाय उद्योग को जीवित रखने के लिए सब्सिडी के रूप में कुछ सरकारी सहायता की जरूरत है जो नेपाल से आने वाली चाय से उत्पन्न खतरे को दूर करने में मदद करेगी। यहां बंगाल चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (बीसीसीआई) द्वारा आयोजित एक सत्र में कनोरिया ने कहा, ‘‘दार्जिलिंग चाय हमारे लिए एक भावना है। यह हमारे खून में बहती है। आज, दार्जिलिंग चाय उद्योग वस्तुतः आईसीयू में एक मरीज की तरह भर्ती है।’’ कनोरिया ने कहा कि 2017 में राजनीतिक आंदोलन और उसके बाद लॉकडाउन के कारण बागानों के बंद होने से पूरे उद्योग को भारी वित्तीय नुकसान हुआ। उन्होंने कहा, ‘‘इससे बहुत सारे विदेशी खरीदारों को दूर कर दिया गया और हमारे पड़ोसी (श्रीलंका) को कुछ निर्यात बाजार पर कब्जा करने का मौका मिला।’’
नेपाल की चाय से बढ़ रहा है खतरा
कनोरिया ने कहा कि नेपाल की चुनौती गंभीर हो गई है क्योंकि वह भारतीय बाजार में घुसपैठ कर रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘दार्जिलिंग की फसल प्रतिवर्ष 65 लाख किलोग्राम तक कम होने के साथ नेपाल में उत्पादन 60 लाख किलोग्राम हो गया है। हमारे पास अब एक गंभीर प्रतिस्पर्धी है।’’ उन्होंने कहा कि आंशिक रूप से जलवायु परिवर्तन के कारण कम उत्पादकता की वजह से दार्जिलिंग की फसल घटी है।
बढ़ती मजदूरी से घटा मुनाफा
उन्होंने कहा कि नेपाल का चाय उद्योग, जिसमें ज्यादातर छोटे कारखाने शामिल हैं, भारत के विपरीत बागान श्रम अधिनियम द्वारा शासित होता है। उन्होंने कहा, ‘‘दार्जिलिंग एक उच्च लागत वाला परिचालन बन गया है, जिसमें 60 प्रतिशत लागत मजदूरी की बैठती है। दार्जिलिंग के अधिकांश बागानों को 200 रुपये प्रति किलोग्राम का नुकसान हो रहा है और प्रत्येक बागान को कुछ करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है।’’ कनोरिया ने कहा कि दार्जिलिंग चाय उद्योग को जीवित रखने के लिए सरकार से कुछ समर्थन की आवश्यकता है।