अब कितना सतायेगी महंगाई डायन, कब घटेंगी ब्याज दरें? आर्थिक सर्वेक्षण में मिला जवाब
बीता साल तो महंगाई की भेंट चढ़ गया, लेकिन अब हर कोई यही सोच रहा है कि आने वाला साल कैसा रहेगा। इसकी एक झलक देश के आर्थिक सर्वेक्षण में दिखाई दी है।
आम आदमी महंगाई की मार से परेशान है। हर कोई यही पूछ रहा है कि महंगाई डायन कब आम आदमी को सताना बंद करेगी। आज पेश हुआ आर्थिक सर्वक्षण इन्हीं सवालों का जवाब लेकर आया है। आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है कि जिद्दी महंगाई से फिलहाल तो राहत मिलने की उम्मीद नहीं है, ऐसे में रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि की आग भी ठंडी होने की उम्मीद नहीं है। हालांकि आर्थिक सर्वे में यह जरूर कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह बड़ी चिंता नहीं है, महंगाई इतनी भी अधिक नहीं है कि निजी खपत को कम कर सके या इतनी कम नहीं है कि निवेश में कमी आए।
लंबे समय तक अधिक रहेंगी ब्याज दरें
आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि जिद्दी महंगाई को रोकने के लिए रिजर्व बैंक द्वारा की जा रही कोशिशें आगे भी जारी रह सकती हैं। आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में पेश किया। रिजर्व बैंक ने अगले साल के लिए महंगाई की दर 6.8 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया है। जनवरी 2022 से अगले 10 महीनों तक महंगाई की दर आरबीआई के ऊपरी सहनीय स्तर से अधिक रही थी। हालांकि नवंबर में इसमें कमी आई और यह 6 प्रतिशत से नीचे आ गई थी। सर्वेक्षण में कहा गया है, "आरबीआई ने वित्त वर्ष 2023 में हेडलाइन मुद्रास्फीति 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है, जो कि इसके लक्ष्य सीमा से बाहर है। साथ ही यह निजी खपत को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं है और इतना भी कम नहीं है कि निवेश के लिए प्रलोभन को कमजोर कर सके।"
यूक्रेन युद्ध के चलते टूटा महंगाई का कहर
आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि रिजर्व बैंक ने महंगाई दर के लिए (+/-) 2 प्रतिशत की सहनीय सीमा तय की गई। रिजर्व बैंक मुद्रास्फीति को 4 प्रतिशत पर रखना चाहता है। लेकिन फरवरी, 2022 से शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद मुख्य रूप से सप्लाई चेन टूटने के कारण भारत की थोक और खुदरा मूल्य महंगाई में अचानक आग लग गई। और 2022 के ज्यादातर समय महंगाई लोगों को परेशान करती रही।
खाद्य महंगाई चिंता का विषय
आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार रूस और यूक्रेन युद्ध के कारण कृषि वस्तुओं की किल्लत से पूरी दुनिया परेशान है। ये दोनों देश गेहूं, मक्का, सूरजमुखी के बीज और उर्वरक के सबसे महत्वपूर्ण उत्पादकों में से हैं। इस समस्या का असर भारत पर भी पड़ा है और उर्वरकों की महंगाई से भारतीय कृषि और अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचा है।
मंदी के बीच उम्मीद की दो किरणें
सर्वे में बताया गया है कि वैश्विक मंदी के बीच उम्मीद की दो लौ झिलमिला रही हैं। पहला है तेल की कम कीमतें और चालू खाता घाटा का बेहतर होना। सर्वे में कहा गया है कि कुल मिलाकर वैश्विक स्थिति नियंत्रण में रहेगी। खुदरा महंगाई दिसंबर में 5.72 प्रतिशत के साथ एक साल के निचले स्तर पर आ गई है। जबकि थोक मुद्रास्फीति 22 महीने के निचले स्तर 4.95 प्रतिशत पर थी।