ब्याज दर का बोझ बढ़ने से कंपनियों को चालू वित्त वर्ष में कर्ज घटाने की कवायद रोकने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है क्योंकि उनकी वित्तपोषण लागत 25 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है। गौरतलब है कि ब्याज दरों का बोझ इस समय महामारी से पहले के स्तर पर पहुंच चुका है और यह 2021-22 के मुकाबले 30 प्रतिशत हो चुका है।
रेटिंग एजेंसी इंडिया रेटिंग्स के एक विश्लेषण के मुताबिक गैर-वित्तीय एवं भारी कर्ज वाली 3,360 कंपनियों पर वित्त वर्ष 2022-23 की पहली छमाही तक ब्याज का बोझ 36 लाख करोड़ रुपये था। इन कंपनियों की ब्याज अदायगी वित्त वर्ष 2021-22 में 2.52 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2023-24 में 3.38 लाख करोड़ रुपये हो सकती है। बढ़ती महंगाई पर काबू पाने के लिए आरबीआई ने मई 2022 से अब तक प्रमुख नीतिगत दर में 2.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है और यह इस समय 6.50 प्रतिशत पर है। यह फरवरी 2020 से पहले के मुकाबले 0.25 प्रतिशत अधिक है।
एजेंसी ने मंगलवार को कहा कि ब्याज अदायगी बढ़ने के कारण कुल ऋण में गिरावट की संभावना नहीं है। वित्त वर्ष 2021-22 की तुलना में 2023-24 में कंपनियों के लिए सभी श्रेणियों में ऋण की लागत बढ़ने का अनुमान है। ब्याज दरों में तेज बढ़ोतरी और अधिक कार्यशील पूंजी वित्त पोषण के चलते ब्याज बहिर्वाह बढ़कर 2023-24 में 3.38 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है। यह आंकड़ा 2021-22 में 2.52 लाख करोड़ रुपये था।
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