आम आदमी को दाल की महंगाई से मिलेगी राहत, इस कारण घटेगी कीमत
चना और मूंग के मामले में, देश आत्मनिर्भर है, लेकिन अरहर और मसूर जैसी अन्य दालों के मामले में, यह अभी भी अपनी कमी को पूरा करने के लिए आयात करता है। उन्होंने कहा कि हालांकि सरकार किसानों को अधिक दाल उगाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है, लेकिन खेती के सीमित क्षेत्रफल को भी ध्यान में रखना होगा।
आम आदमी के लिए अच्छी खबर है। आने वाले समय में दालों की महंगाई से राहत मिलने की उम्मीद बढ़ गई हे। दरअसल, बुवाई का अधिक रकबा होने के कारण देश के मसूर दलहन उत्पादन के वर्ष 2023-24 के रबी सत्र में 1.6 करोड़ टन के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंचने का अनुमान है। उपभोक्ता मामलों के सचिव रोहित कुमार सिंह ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2022-23 के रबी सत्र में मसूर का उत्पादन 1.56 करोड़ टन हुआ था। दुनिया में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता होने के बावजूद, भारत दलहन की घरेलू कमी को पूरा करने के लिए मसूर और तुअर सहित कुछ दालों का आयात करता है। जानकारों का कहना है कि मसूर का उत्पादन बढ़ने से घरेलू बाजार में कीमत कम होगी। इसका फायदा आम आदमी को मिलेगा। दूसरी दाल का भी उत्पादन बढ़ने का अनुमान है। इससे भी दालों की कीमत पर असर देखने को मिलेगा।
मसूर उत्पादन दुनिया में सबसे ज्यादा होगा
सिंह ने ग्लोबल पल्स कन्फेडरेशन (जीपीसी) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि इस साल, मसूर का उत्पादन अब तक के उच्चतम स्तर पर रहने वाला है। हमारा मसूर उत्पादन दुनिया में सबसे ज्यादा होगा। रकबे में वृद्धि हुई है। परिदृश्य बदल रहा है। चालू रबी सत्र में, मसूर फसल के अंतर्गत अधिक रकबे को लाया गया है। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, चालू रबी सत्र में 12 जनवरी तक मसूर का कुल रकबा बढ़कर 19.4 लाख हेक्टेयर हो गया है, जबकि एक साल पहले की अवधि में यह रकबा 18.3 लाख हेक्टेयर था। सचिव ने कहा कि देश में सालाना औसतन 2.6-2.7 करोड़ टन दाल का उत्पादन होता है।
चना और मूंग के मामले में, देश आत्मनिर्भर
चना और मूंग के मामले में, देश आत्मनिर्भर है, लेकिन अरहर और मसूर जैसी अन्य दालों के मामले में, यह अभी भी अपनी कमी को पूरा करने के लिए आयात करता है। उन्होंने कहा कि हालांकि सरकार किसानों को अधिक दाल उगाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है, लेकिन खेती के सीमित क्षेत्रफल को भी ध्यान में रखना होगा। किसानों और उपभोक्ताओं के हितों के बीच संतुलन का जिक्र करते हुए सचिव ने कहा कि मुझे लगता है कि हम पिछले कुछ वर्षों में ठीक ठाक काम कर रहे हैं। मौसम की गड़बड़ी के बावजूद, हम दाल की कीमतों को उचित नियंत्रण में रखने में कामयाब रहे हैं।
लगभग 1,000 टन तुअर खरीदा गया
नेफेड के प्रबंध निदेशक रितेश चौहान ने कहा कि हाल ही में शुरु किए गए तुअर खरीद पोर्टल पर सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है। उन्होंने कहा कि पोर्टल की पेशकश के कुछ दिनों के भीतर पंजीकृत तुअर किसानों के माध्यम से लगभग 1,000 टन तुअर खरीदा गया है। वैश्विक दाल कार्यक्रम के बारे में साझा करते हुए, जीपीसी बोर्ड के अध्यक्ष विजय अयंगर ने कहा कि स्थायी खाद्य प्रणालियों के विकास में दाल महत्वपूर्ण हैं। जब भारत में खाद्य सुरक्षा और पोषण की बात आती है तो दाल महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा, ‘‘इस साल जीपीसी के नई दिल्ली सम्मेलन का समय और स्थान इससे अधिक उपयुक्त नहीं हो सकता क्योंकि हम वैश्विक दाल उद्योग को जोड़ने और सहयोग करने के लिए एक साथ लाने पर विचार कर रहे हैं।’’