US Fed Rate Hike: अमेरिका की 'छींक' न कर दे भारत को 'बीमार'! जानिए US Fed की ब्याज दरों में वृद्धि का भारत पर पड़ेगा क्या असर?
भारत में जैसे केंद्रीय बैंक 'रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया है(Reserve Bank Of India)' वैसे ही अमेरिका के केंद्रीय बैंक का नाम फेडरल रिजर्व(Federal Reserve) है। अमेरिका इस समय महगांई की मार झेल रहा है। वहां खुदरा महंगाई 42 साल के शीर्ष स्तर पर जा चुकी है।
Highlights
- अमेरिका में सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व(Federal Reserve) ने ब्याज दर में 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी की
- अमेरिका में महंगाई 42 साल के शीर्ष स्तर पर
- जुन में अमेरिका की खुदरा महंगाई दर 9.1% रही, जबकी भारत में 7.01%
भारत(India) के बिजनेस जगत में एक कहावत काफी फेमस है कि अमेरिका(America) को छींक भी आती है तो भारत को बुखार आ जाता है। दरअसल, अमेरिका में सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व(Federal Reserve) ने ब्याज दर में 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी की है। अमेरिका में बढ़ती महगांई पर लगाम लगाने के लिए ऐसा किया गया है। आज हम ये समझने की कोशिश करेंगे कि अमेरिका ब्याज दरें क्यों बढ़ा रहा है? और उससे भारत को कितना नुकसान होगा? क्या इससे भारतीय रुपये में भी कमजोरी देखने को मिलगी? और भारत इस बुखार से निपटने के लिए कितना तैयार है?
अमेरिका में महंगाई 42 साल के शीर्ष स्तर पर
भारत में जैसे केंद्रीय बैंक 'रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया(Reserve Bank Of India)' है वैसे ही अमेरिका के केंद्रीय बैंक का नाम फेडरल रिजर्व (Federal Reserve) है। अमेरिका इस समय महगांई की मार झेल रहा है। वहां खुदरा महंगाई 42 साल के शीर्ष स्तर पर जा चुकी है। इस पर काबू पाने के लिए Fed लगातार ब्याज दरें बढ़ाने में लगा हुआ है। इससे पहले हुई बैठक में फेड रिजर्व ने 0.50% की बढ़ोतरी की थी, लेकिन उससे महंगाई पर काबू पाने के बजाय और तेजी आती दिखी। जब महंगाई बढ़ने लगती है तब इसका असर सीधा सप्लाई चेन पर पड़ता है। और रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते ग्लोबल सप्लाई चेन पर असर पड़ा है। एक्सपर्ट पहले ही ये अनुमान लगा रहे थे कि फेड ब्याज दर में 0.75 फीसदी की और बढ़ोतरी कर सकता है।
भारत को इससे कितना नुकसान?
भारत को इंटरनेशनल लेवल पर बिजनेस करने के लिए डॉलर की जरूरत होती है। कुछ देश को छोड़ दिया जाए तो विश्व के लगभग सभी देश भारत से डॉलर में ही सामान का आयात-निर्यात करते हैं। इसलिए भारत को डॉलर में व्यापार करने के लिए उसके मुद्रा भंडार में डॉलर का होना बेहद जरूरी हो जाता है। भारत के पास डॉलर या तो विदेशी निवेशक जब निवेश कर भारत में व्यापार करते हैं तब आता है जिसे (Foreign direct investment) FDI कहा जाता है या कोई भारतीय नागरिक विदेश से डॉलर कमा कर घर पैसा भेजता है। या जब कोई विदेशी निवेशक शेयर बाजार या बांड बाजार में निवेश करता है। उसे एफआईआई(Foreign Institutional investment) कहते हैं। अगर कोई इन्वेस्टर FII के जरिए पैसा लगाता है तो उसे आसानी से निकाल सकता है, और विदेशी बाजार में निवेश कर मोटा मुनाफा कमा सकता है। क्योंकि शेयर मार्केट में लगाया पैसा आदमी जब चाहे तब आसानी से निकाल सकता है। और भारत से सबसे ज्यादा जो निवेशक पैसा निकाल रहे हैं। उन्होनें भारत में एफआईआई के जरिए निवेश किया हुआ है। इसका सीधा असर भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ेगा।
अब चूंकि अमेरिका ब्याज दर बढ़ा रहा है तो निवेशक को अमेरिका में पैसे कमाने के रास्ते दिखने लगे हैं। उनके लिए वहां पैसा लगाना आसान भी है क्योंकि अमेरिका की करेंसी भी डॉलर है। यानि आप डॉलर में इंवेस्ट कीजिए और डॉलर में ही मुनाफा कमाइए। वहीं अगर वे भारत में पैसा निवेश करते हैं तो उन्हें डॉलर से रुपये में करेंसी को बदलना होगा। फिर वो रुपये में यहां कारोबार कर सकेंगे। एक तरफ रुपये की वैल्यू भी गिर रही है, इसलिए उन्हें अमेरिका में सभावनाएं ज्यादा दिखती नजर आ रही है। ब्याज दर बढ़ने से अमेरिका में कर्ज महंगे होंगे, और बड़े निवेशकों को इससे मोटा मुनाफा कमाने को मिलेगा।
अमेरिकी Fed के फैसले के बाद भारतीय रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की आगामी तीन से पांच अगस्त को होने वाली मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो रेट बढ़ने की आशंका है। अगर भारत में भी रेपो रेट बढ़ा दिया जाता है तो इससे देश में कर्ज महंगे हो जाएंगे। नागरिकों को EMI ज्यादा देना पड़ेगा।
क्या भारतीय रुपया इससे कमजोर होगा?
भारतीय रूपये की मजबुती उसके मुद्रा भंडार में जमा डॉलर और बाजार तय करते हैं। अमेरिका ने जब से ब्याज दर बढ़ाई है। विदेशी निवेशक जिनका भारतीय शेयर बाजार में पैसा लगा है। वह पैसा निकालकर अमेरिका ले जा रहे हैं, क्योंकि उन्हें वहां ज्यादा रिटर्न मिलेगा। इसका सीधा असर आने वाले समय में भारतीय रूपया पर देखने को मिलेगा। इससे शेयर बाजार में भी काफी गिरावट दिखेगी। भारत कच्चा तेल का 80% इंपोर्ट करता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक बैरल कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर से अधिक चल रही है। यानि हमें तेल खरीदने के लिए ज्यादा डॉलर चुकाना पड़ रहा है। यह डॉलर तेल कंपनियों को बाजार से खरीदना पड़ता है। एक तरफ विदेशी निवेशकों का भारतीय बाजार से पैसा निकालना और दूसरी तरफ बढ़ती डॉलर की मांग रूपये को कमजोर करने में बड़ी भूमिका निभा रही है।
भारत इससे निपटने के लिए तैयार है?
जुन में अमेरिका की खुदरा महंगाई दर 9.1% है, जबकी भारत में 7.01% है। जो पिछले महीने यानि मई से 0.03% कम है, जबकी अमेरिका में मई महीने में 8.6 फीसदी महंगाई दर थी। जो कि जुन में और बढ़ गई। अमेरिका की तुलना में देखा जाए तो भारत में महंगाई दर कम है लेकिन भारत की करेंसी अमेरिका की डॉलर से काफी कमजोर है। भारत अगर अपनी निर्भरता डॉलर से कम करना शुरू कर दे तो रुपये में हो रही गिरावट और बढ़ रही महंगाई पर कुछ हद तक लगाम लगाया जा सकता है। लेकिन निकट भविष्य में ऐसा होता नहीं दिख रहा है।