आपको यह जानकर शायद आश्चर्य हुआ होगा कि देश की आजादी के 76 साल बाद भी देश की 95 प्रतिशत आबादी का इंश्योरेंस नहीं है। नेशनल इंश्योरेंस एकेडमी ने गुरुवार को जारी रिपोर्ट में इस बात की जानकारी दी। भाषा की खबर के मुताबिक, इंश्योरेंस से जुड़े इस तथ्य को लेकर भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) के चेयरमैन देवाशीष पांडा ने यह रिपोर्ट जारी की। यह स्थिति तब है जब सरकार और इंश्योरेंस रेगुलेटर ने लगातार कोशिशें की हैं।
प्राकृतिक आपदा बीमा की जरूरत
खबर के मुताबिक, इस मौके पर आईआरडीएआई ने इंडस्ट्री से उन कदमों को फॉलो करने का आग्रह किया, जिनकी मदद से यूपीआई, बैंक खाते खोलने और साथ ही मोबाइल पहुंच बढ़ाने में भारी सफलता मिली। पांडा ने कहा कि हाई रिस्क वाले क्षेत्रों में एक जरूरी प्राकृतिक आपदा बीमा की जरूरत है और इस रिपोर्ट में इसकी सिफारिश भी की गई है। सभी के लिए इंश्योरेंस के टारगेट को हासिल करने के लिए ऐसा करना जरूरी है।
73 प्रतिशत आबादी के पास स्वास्थ्य बीमा नहीं
रिपोर्ट के मुताबिक, देश की 144 करोड़ आबादी में 95 प्रतिशत आबादी बीमा के दायरे में नहीं है। देश में आने वाली प्राकृतिक आपदाओं और दूसरे जलवायु संबंधी आपदाओं की संख्या में ग्रोथ के मद्देनजर बीमा प्रसार को बढ़ाना महत्वपूर्ण है। रिपोर्ट में कहा गया है कि निम्न और मध्यम आय वर्ग के 84 प्रतिशत लोगों और तटीय क्षेत्रों, दूसरी और तीसरी श्रेणी के शहरों के 77 प्रतिशत लोगों के पास इंश्योरेंस की कमी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 73 प्रतिशत आबादी स्वास्थ्य बीमा के दायरे में नहीं है और इस दिशा में सरकार, गैर सरकारी संगठनों और उद्योग समूहों के बीच सहयोग बढ़ने की जरूरत है।
भारत की इंश्योरेंस इंडस्ट्री
भारत में आज 34 सामान्य बीमा कंपनियां और 24 जीवन बीमा कंपनियां काम कर रही हैं। बीमा क्षेत्र बहुत बड़ा है और 15-20% की तेज रफ्तार से बढ़ रहा है। आईआरडीएआई के मुताबिक, बैंकिंग सेवाओं के साथ, बीमा सेवाएं देश के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 7% का योगदान करती हैं। एक अच्छी तरह से विकसित और विकसित बीमा क्षेत्र आर्थिक विकास के लिए एक वरदान है क्योंकि यह देश की जोखिम लेने की क्षमता को मजबूत करने के साथ-साथ बुनियादी ढांचे के विकास के लिए लंबी अवधि में धन प्रदान करता है।
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