एयर इंडिया को पटरी पर लाने के लिए काफी प्रयास करने की जरूरत होगी : रतन टाटा
रतन टाटा के मुताबिक टाटा समूह का एयर इंडिया के लिये बोली जीतना बड़ी खबर है, और यह टाटा समूह के विमानन उद्योग में मौजूदगी को यह मजबूत व्यवसायिक अवसर उपलब्ध कराएगी
नई दिल्ली। रतन टाटा ने शुक्रवार को एयर इंडिया के अधिग्रहण के लिये टाटा संस की 18,000 करोड़ रुपये की बोली स्वीकार करने के सरकार के निर्णय का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि एयरलाइन समूह के लिये एक मजबूत अवसर प्रदान करती है। हालांकि, कर्ज में डूबी एयर इंडिया को पटरी पर लाने के लिये काफी प्रयास की जरूरत होगी। उन्होंने कहा, ‘‘एयर इंडिया का फिर से स्वागत है।’’ टाटा ने एक बयान में कहा, ‘‘टाटा समूह का एयर इंडिया के लिये बोली जीतना बड़ी खबर है।’’ उन्होंने यह स्वीकार किया कि कर्ज में डूबी एयर इंडिया को पटरी पर लाने के लिये काफी प्रयास की जरूरत होगी, लेकिन यह जरूर है कि टाटा समूह के विमानन उद्योग में मौजूदगी को यह मजबूत अवसर उपलब्ध कराएगी।’’
सरकार ने शुक्रवार को कहा कि टाटा संस की विशेष उद्देश्यीय इकाई (एसपीवी) ने एयर इंडिया के अधिग्रहण के लिये स्पाइसजेट प्रवर्तक अजय सिंह की अगुवाई वाले समूह को पीछे छोड़ते हुए सफल बोली लगायी है। इसके साथ एयर इंडिया टाटा के पास वापस चली गयी है। टाटा ने एयरलाइन की स्थापना की थी। बाद में इसका राष्ट्रीयकरण कर दिया गया था। रतन टाटा ने कहा, ‘‘एक समय जे आर डी टाटा के नेतृत्व में एयर इंडिया ने दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित एयरलाइनों में से एक होने की प्रतिष्ठा प्राप्त की थी।’’ उन्होंने कहा कि टाटा को उस छवि और प्रतिष्ठा को फिर से हासिल करने का अवसर मिलेगा जो उसने पूर्व में हासिल की थी। टाटा ने कहा, ‘‘ जे आर डी टाटा अगर आज हमारे बीच होते तो बहुत खुश होते।’’ उन्होंने निजी क्षेत्र के लिए चुनिंदा उद्योगों को खोलने के लिए सरकार को धन्यवाद दिया।
वहीं एयर इंडिया की बिड जीतने पर टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन ने इसे ऐतिहासिक पल करार दिया और उन्होने कहा कि हमारी कोशिश रहेगी कि हम एक ऐसी विश्वस्तरीय एयरलाइन खड़ी करें जिसपर हर भारतीय को गर्व हो
सरकार ने आज ऐलान किया कि टाटा संस ने कर्ज में डूबी सरकारी एयरलाइन एयर इंडिया के अधिग्रहण की बोली जीत ली है। जहांगीर रतनजी दादाभाई (जेआरडी) टाटा ने 1932 में एयरलाइन की स्थापना की। तब इसे टाटा एयरलाइंस कहा जाता था। 1946 में टाटा संस के विमानन प्रभाग को एयर इंडिया के रूप में सूचीबद्ध किया गया था और 1948 में एयर इंडिया इंटरनेशनल को यूरोप के लिए उड़ानों के साथ शुरू किया गया था। अंतरराष्ट्रीय सेवा भारत में पहली सार्वजनिक-निजी भागीदारी में से एक थी, जिसमें सरकार की 49 प्रतिशत, टाटा की 25 प्रतिशत और जनता की शेष हिस्सेदारी थी। 1953 में एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण किया गया था।