Modi’s Make in India: अमेरिकन मैन्युफैक्चरिंग कंपनियां चाहती हैं और सुधार, मेक इन इंडिया को मिलेगी रफ्तार
ग्लोबल कंपनियां अभी भी भारत में और अधिक सुधार की संभावनाएं देख रही हैं। मेक इन इंडिया वीक के नाम से यह कार्यकम मुंबई में 13 फरवरी से शुरू हुआ है।
नई दिल्ली। भारत ग्लोबल मैन्युफैक्चरर्स को भारत में अपनी दुकान खोलने के लिए आकर्षित करने हेतु एक बहुत बड़ा कार्यक्रम आयोजित कर रहा है। लेकिन ग्लोबल कंपनियां अभी भी भारत में और अधिक सुधार की संभावनाएं देख रही हैं। मेक इन इंडिया वीक के नाम से यह कार्यकम मुंबई में 13 फरवरी से शुरू हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मेक इन इंडिया कार्यक्रम, जो कि देश का सबसे बड़ा ब्रांड है, का लक्ष्य देश की जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी बढ़ाकर 25 फीसदी करना है, जो कि वर्तमान में 17 फीसदी है। इस कार्यक्रम में कई देशों की कंपनियां भाग ले रही हैं। लेकिन भारत में बिजनेस करना इतना आसान भी नहीं है।
यूएस-इंडिया बिजनेस काउंसिल के प्रेसिडेंट मुकेश अघी, जो कि एक बिजनेस एडवोकेसी ग्रुप है और इसकी स्थापना 1975 में हुई थी, ने क्वार्ट्ज से बातचीत में बताया कि ग्लोबल कंपनियां आखिर क्या चाहती हैं और कैसे भारत और यूएस कैसे बायलैटेरल ट्रेड को बढ़ा सकते हैं।
यहां प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश:
अमेरिकी कंपनियों की भारत से क्या प्रमुख मांग हैं?
भारत का फोकस ईज ऑफ डूइंग बिजनेस पर होना चाहिए। यदि एक कंपनी जैसे मैरियॉट भारत में अपना होटल बनाना चाहती है, उसे इसके लिए तकरीबन 153 मंजूरियां लेनी होंगी। इनकी संख्या कैसे कम होगी? इसके बाद, हमें पॉलिसी साइट से और अधिक पूर्वानुमानित होने की जरूरत है। बोर्डरूम एक लगातार सेट पैटर्न को प्राथमिकता देते हैं। इसलिए, यह महत्वपूर्ण है। तीसरा, भारत को मैन्युफैक्चरिंग में कैपिटल कॉस्ट को कम करने पर फोकस करना चाहिए।
वर्तमान में भारत की इकोनॉमी के प्रति यूएस बिजनेस में क्या आम भावना है?
यदि आप ब्रिक देशों की बात करते हैं तो, ब्राजील में गड़बड़ है, रूस ढह चुका है, दक्षिण अफ्रीका दोबारा संघर्ष कर रहा है और चीन में आर्थिक मंदी गहराती जा रही है। इसलिए ऐसे में भारत एक चमकता सितारा है। भारत को छोड़कर यहां अन्य कोई बड़ी इकोनॉमी नहीं है, जो 7.3 फीसदी की दर से आगे बढ़ रही हो। भारत और अधिक आकर्षक बनेगा, बिजनेस के लिए भारत अधिक खुला और पारदर्शी है, इस संदेश को लगातार सरकार को आगे बढ़ाते रहना होगा।
कौन से सेक्टर भारत और अमेरिका के बीच बायलैटेरल ट्रेड को बढ़ाने में मददगार हो सकते हैं?
भारत सरकार रक्षा उपकरण खरीदने पर बहुत ज्यादा खर्च करती है। मेरा मानना है कि हमें अमेरिका में एसएमई पर फोकस करने की जरूरती है, जो रक्षा उपकरणों की आपूर्ति कर सकते हैं। अभी, अमेरिका में, अधिकांश डिफेंस प्रोडक्ट्स एसएमई द्वारा बनाए जा रहे हैं और इसे भारत में भी दोहराया जा सकता है। दूसरा है हेल्थकेयर। अमेरिका के पास युवा जनसंख्या थी, जो अब बूढ़ी है, किफायती हेल्थकेयर अब यहां महत्वपूर्ण है। हमें भातर को टॉप 10 फार्मा एनवायरमेंट बनाने पर ध्यान देना चाहिए। इसका मतलब यह है कि भारत को अपने आप को क्लीनिकल ट्रायल के लिए खोलना चाहिए। हमें अधिक रिसर्च की जरूरत है। अमेरिका में सफलता के लिए इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी (आईपी) और पेटेंट्स जरूरी है। लेकिन इंडियन फार्मा कंपनियां अक्सर यूएस रेग्यूलेटर्स के साथ उलझी रहती हैं। इसके दो कारण हैं, आज अमेरिका में तरकीबन 30 फीसदी जेनेरिक ड्रग मार्केट इंडियन कंपनियों के पास है। एक अनुमान के मुताबिक ये कंपनियां अमेरिकी सरकार का हर साल 20 अरब डॉलर बचाती हैं। भारतीय दवा कंपनियों को एफडीए मानकों पर खरा उतरने की जरूरत है।
फार्मा और आईटी के अलावा क्या यूएस की रिटेल चेन भी भारत में आना चाहती हैं?
हां, ये सही है। एप्पल, फॉक्सकॉन के जरिये भारत में मैन्युफैक्चरिंग शुरू करने जा रही है। पिछली तिमाही में भारत में एप्पल आईफोन की बिक्री 800,000 यूनिट रही है। अब एप्पल भारत में अपने स्वयं के रिटेल स्टोर के जरिये बिक्री शुरू करना चाहती है। बहुत से यूएस रिटेलर्स यह देख रहे हैं कि एप्पल कैसे भारत में आगे बढ़ती है और मेरा मानना है कि यदि एप्पल के साथ सबकुछ अच्छा होता है, तो आप देखेंगे कि यह यूएस रिटेलर्स के लिए दरवाजा खुलने जैसा होगा।
source: Quartz India