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भारत के लिए आगे रास्ता है कठिन, वैश्विक मंदी गहराने से घट सकती है आर्थिक वृद्धि की रफ्तार

मुख्‍य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्‍यम ने कहा है कि भारत के लिए आगे रास्‍ता बहुत कठिन है। अगले वित्‍त वर्ष में 7-7.5 फीसदी वृद्धि का अनुमान है।

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नई दिल्‍ली। देश के मुख्‍य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्‍यम ने कहा है कि भारत के लिए आगे रास्‍ता बहुत कठिन है। व्‍यावहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए अगले वित्‍त वर्ष में 7-7.5 फीसदी आर्थिक वृद्धि का अनुमान जताया गया है। यदि 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट की स्थिति बनती है तो देश की वृद्धि दर पटरी से उतर भी सकती है। उन्‍होंने कहा कि भारत को उच्च वृद्धि के मार्ग पर लाने के लिए सरकार को सुधारों को लागू करने और परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के बहुत कठिन प्रयास करने होंगे, क्योंकि इसके लिए कोई जादू की छड़ी नहीं बनी है।

सुब्रमण्‍यम ने कहा कि हम कुछ चीजों को रेखांकित करते हैं, जो की जा सकती थी, लेकिन नहीं की गई। वस्तु एवं सेवा कर, रणनीतिक विनिवेश ऐसी चीजें हैं, जो हमें निश्चित तौर पर करने की जरूरत है। कॉरपोरेट एवं बैंक की वित्तीय स्थिति संबंधी चुनौतियां सचमुच महत्वपूर्ण हैं, जिनका समाधान होना चाहिए। वित्त वर्ष 2015-16 की आर्थिक समीक्षा पेश होने के एक दिन बाद वह इस सवाल का जवाब दे रहे थे कि सरकार को 8-10 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए।

सुब्रमण्यम ने कहा कि सरकार दिवाला कानून लाकर घरेलू उद्योगों की समस्या सुलझाने की कोशिश कर रही है। उदय योजना बिजली क्षेत्र में सुधार के लिए है। साथ ही बैंकों को पर्याप्त रूप से पूंजी उपलब्ध करने का प्रयास किया जा रहा है और इस्पात क्षेत्र को संकट से उबारने की पहल हो रही है। उन्होंने कहा, यह बहुत कठिन काम है। इसमें बहुत से पक्ष जुड़े हैं। बहुत सी परियोजनाएं जिनके समाधान की जरूरत है। इसके लिए काफी धन की भी जरूरत है। इसलिए हमें धीरे-धीरे और तयशुदा तरीके से इस प्रक्रिया के जरिये काम करना होगा। यह कोई जादू की छड़ी घुमाने जैसा नहीं है।

सुब्रमण्यम ने कहा कि वृद्धि के लिए सार्वजनिक निवेश को फिलहाल कुछ समय तक मदद करनी होगी क्योंकि निजी निवेश में अभी गति नहीं आई है। उन्होंने कहा, इस साल वैश्विक अर्थव्यवस्था बहुत ही मुश्किल में है। इस समय विश्व के बारे में अजीब बात यह है कि केवल इक्का दुक्का देश ही दिखते हैं, जिन्हें आप मजबूत या स्थिर कह सकते हैं। भारत ही एक एकमात्र उम्मीद की किरण दिखता है। विश्व में जो कुछ हो रहा है उससे हमारी संभावनाएं भी प्रभावित होंगी।

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