नई दिल्ली| जीवाश्म ईंधन के प्रति राष्ट्रपति जो बाइडेन के विरोध के बावजूद, अमेरिका सतत ऊर्जा विकास का समर्थन करते हुए भारत को पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति जारी रखेगा। विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने यह जानकारी दी। उन्होंने सोमवार को यह पूछे जाने पर कि क्या बाइडेन प्रशासन निर्यात जारी रखेगा, तो इसके जवाब में प्राइस ने कहा, "भारत के साथ सामरिक ऊर्जा साझेदारी के तहत हमारा व्यापक सहयोग मजबूत है और यह तब भी बढ़ता रहेगा जब प्रशासन जलवायु परिवर्तन के मुद्दों को प्राथमिकता देगा।"
जलवायु परिवर्तन से लड़ने की अपनी प्रतिबद्धता के साथ, बाइडेन जीवाश्म ईंधन से जुड़ी स्थितियों की समीक्षा कर रहे हैं और एक बड़े कदम में कनाडा से अमेरिका तेल लाने के लिए विवादास्पद कीस्टोन पाइपलाइन परियोजना को रद्द कर दिया। अमेरिकी सरकार के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका कच्चे तेल के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ताओं में से एक बन गया है, जिसने 2020 तक नवंबर के दौरान लगभग 8.4 करोड़ बैरल और लगभग 11,500 करोड़ क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस का निर्यात किया है।
प्राइस ने कहा, "जब यह ऊर्जा सहयोग में अधिक व्यापक रूप से आता है, तो मैं कहूंगा कि अमेरिका-भारत ऊर्जा साझेदारी सतत ऊर्जा विकास का समर्थन करती है। यह 21वीं सदी की बिजली जरूरतों को पूरा करने के लिए ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करती है।" उन्होंने कहा कि यह सहयोग राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा करता है और क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्थिरता को बढ़ावा देता है। ऊर्जा क्षेत्र में भारत-अमेरिका का सहयोग 2017 में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन में बढ़ना शुरू हुआ, जो भारत को तेल और गैस निर्यात बढ़ाने और ईरान पर निर्भरता से दूर करने के लिए उत्सुक थे।
अमेरिका-भारत ऊर्जा सहयोग ने स्वच्छ ऊर्जा पर जोर देने के साथ पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के प्रशासन में जोर पकड़ना शुरू किया लेकिन ट्रंप प्रशासन के तहत, जिन्होंने जलवायु परिवर्तन मसले से दूरी बना ली थी, अमेरिका से जीवाश्म ईंधन निर्यात ने रफ्तार पकड़ी।
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