देश में 40% तक सब्जी और फल की बर्बादी, 10% अनाज हो जाता है खराब: IARI
संस्थान के मुताबिक अगर फल सब्जियों की बर्बादी खत्म की जा सके तो किसानों की आय दुगना करने का लक्ष्य पाया जा सकता है। संस्थान ने इसी के साथ एक खास फ्रिज भी विकसित किया है।
आईएआरआई के निदेशक डॉ. ए.के. सिंह ने आईएएनएस से एक खास बातचीत के दौरान कहा कि देश में कुल उत्पादन का 30 से 40 फीसदी तक फलों और सब्जियों की बर्बादी होती है जबकि कुल उत्पादन का 10 फीसदी अनाज खराब हो जाता है। उन्होंने कहा कि अगर फलों, सब्जियों और अनाज का सही तरीके से परिरक्षण हो तो यह किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य हासिल करने में सहायक होगा।
आईएआरआई द्वारा विकसित 'पूसा फार्म सन फ्रिज' ऑन फार्म स्टोरेज के लिए काफी कारगर साबित होगा। डॉ. सिंह ने बताया कि इसमें दो टन तक हरी सब्जियों, ताजे फलों और फूलों का भंडारण किया जा सकता है और यह पूरी तरह सौर उर्जा से संचालित है। उन्होंने कहा, "दिन के समय सौर उर्जा से एसी चलता है और रात के समय इसमें मौजूद ठंडा पानी को एक नई तकनीक से इसकी छत पर सर्कुलेट किया जाता है जिससे तापमान चार से 12 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच रहता है जिससे फल व सब्जियों का भंडारण सुरक्षित तरीके से किया जाता है।"
उन्होंने बताया कि 'पूसा फार्म सन फ्रिज' को एक जगह से दूसरी जगह भी आसानी से ले जाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि किसानों के लिए यह काफी उपयोगी साबित होगा। एक फ्रिज का बनाने की लागत पांच से सात लाख रुपये आई है। डॉ. ए.के. सिंह ने कहा कि देश से फलों और सब्जियों के निर्यात की बड़ी संभावना है और इसके लिए संस्थान निरंतर निर्यात वाली वेरायटी विकसित करने की दिशा में काम कर रहा है। इसी क्रम में निर्यात के मकसद से रंगीन छिलके और कम मिठास वाले आम की नई किस्में पूसा मनोहरी और पूसा दीपशिखा द्वारा विकसित की गई हैं जिनका भंडारण ज्यादा दिनों तक किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि जल्द ही आम की इन किस्मों के पौधे किसानों को उपलब्ध कराए जाएंगे।
डॉ. सिंह ने बताया कि धान की पराली के दहन की समस्या से निजात दिलाने में संस्थान द्वारा विकसित पूजा डिकंपोजर आने वाले दिनों में काफी सहायक साबित होगा क्योंकि इससे 25 दिनों के भीतर धान की पराली गला दी जाती है। आईएआरआई निदेशक ने बताया कि पूसा द्वारा संपूर्ण नामक एक ऐसा तरल जैव उर्वरक विकसित किया गया है जिससे जमीन में पोटाश, फास्फोरस और नाइट्रोजन की उपलब्घता बढ़ा कर जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है।
उन्होंने धान और गेहूं की विकसित नई किस्मों की भी जानकारी दी और कहा कि तीन दिवसीय पूसा कृषि विज्ञान मेले में तमाम फसलों की नई किस्मों, कृषि प्रौद्योगिकी यंत्रों और नवाचारों की प्रदर्शनी लगाई गई है और इस बार किसान ऑनलाइन भी इस मेले का अवलोकन कर सकते हैं। यह मेला 25 फरवरी से 27 फरवरी तक चलेगा। डॉ. सिंह ने बताया कि इस बार पूसा कृषि विज्ञान मेला की थीम आत्मनिर्भर किसान रखा गया है जिसमें हमने यह बताने की कोशिश की है कि किस प्रकार प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग से कृषि को उन्नत किया जा सकता है और किसानों को सशक्त व समृद्ध बनाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि इसके लिए मेले में एक खास सत्र का भी आयोजन किया जा रहा है।