UN संकल्प 2030: ...तो क्या 15 साल में भारत से खत्म हो जाएगी गरीबी?
संयुक्त राष्ट्र (UN) सतत विकास लक्ष्य (यूएन-एसडीजी) में साल 2030 तक दुनिया से गरीबी खत्म करने का संकल्प लिया है।
संयुक्त राष्ट्र (UN) सतत विकास लक्ष्य (यूएन-एसडीजी) में साल 2030 तक दुनिया से गरीबी खत्म करने का संकल्प लिया है। तो क्या मान लिया जाए कि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अगले 15 वर्षों में भारत से गरीबी खत्म हो जाएगी? यूएन ने 70वें सेशन में कहा कि दुनिया में गरीबी कम करने में भारत की प्रमुख भूमिका है। पिछले पांच दशकों के दौरान भारत में गरीबों की संख्या घटी है, बावजूद इसके अभी भी एक बहुत बड़ी आबादी गरीबी के साये में है। वर्तमान में देश की 29.8 फीसदी जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे रहने को मजबूर है। पिछले 50 वर्षों में सरकार ने गरीबी खत्म करने के लिए कई योजनाएं शुरू तो की हैं, लेकिन इनका कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आया है। यूएन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए अगले 15 सालों में भारत सरकार गरीबी को खत्म कर दे, इसके लिए उसे किसी नई योजना की नहीं बल्कि एक नई रणनीति की जरूरत होगी।
भारत में कितनी गरीबी और गरीब कौन?
यूएन की सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्य रिपोर्ट 2014 के मुताबिक दुनिया के सभी गरीब लोगों का 32.9 फीसदी हिस्सा भारत में रहता है। इस हिस्सेदारी के साथ भारत गरीबों की सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन गया है। इस मामले में भारत चीन, नाइजीरिया और बांग्लादेश से भी आगे है। वर्तमान में भारत की कुल आबादी का 29.8 फीसदी हिस्सा गरीब है। योजना आयोग के मुताबिक खानपान पर शहरों में 965 रुपए और गांवों में 781 रुपए प्रति माह खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं माना जा सकता है। गरीबी रेखा की नई परिभाषा तय करते हुए योजना आयोग ने कहा कि इस तरह शहर में 32 रुपए और गांव में हर रोज 26 रुपए खर्च करने वाला व्यक्ति बीपीएल परिवारों को मिलने वाली सुविधा को पाने का हकदार नहीं है। योजना आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में बताया है कि देश में 40 करोड़ 75 लाख लोग गरीबी रेखा के नीचे जी रहे हैं।
वैश्विक गरीबी दर 10 फीसदी : विश्व बैंक
दुनियाभर में अत्यंत गरीबी में जीवनयापन कर रहे लोगों की संख्या 2015 में वैश्विक आबादी का 10 फीसदी से कम हो सकती है। विश्व बैंक द्वारा रविवार को जारी पूर्वानुमान रिपोर्ट में यह बात कही गई है। इस पूर्वानुमान में प्रतिदिन 1.9 डॉलर की एक नई अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा निर्धारित की गई है, जो 2005 में निर्धारित प्रतिदिन 1.25 डॉलर खर्च करने की गरीबी रेखा से बेहतर है। इस उन्नत गरीबी रेखा में विभिन्न देशों में जीवनयापन की लागत के अंतर और पिछली गरीबी रेखा की वास्तविक क्रय शक्ति को संरक्षित रखने से जुड़ी नई सूचना शामिल है।
प्रमुख अर्थशास्त्री कौशिक बसु ने अपने ब्लॉग में लिखा कि गरीबी रेखा को सही रूप से समायोजित करने का कारण यह है कि विश्व बैंक यह साबित करना चाहता है कि 2005 से कीमतें बढ़ी हैं और 1.25 डॉलर से अब उतनी वस्तुएं नहीं खरीदी जा सकती, जो 2005 में खरीदी जा सकती थीं। गरीबी की नई रेखा का इस्तेमाल कर विश्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि वैश्विक गरीबी 2012 में वैश्विक आबादी के 90.2 करोड़ लोग यानी 12.8 प्रतिशत की तुलना में 2015 में घटकर 70.2 करोड़ लोग यानी 9.6 प्रतिशत हो जाएगी।
योजनाओं का अंबार
सरकार द्वारा गरीबी हटाने के नाम पर कई कार्यक्रम चलाए गए हैं। इन पर अरबों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, राष्ट्रीय वृद्धा पेंशन योजना, राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना, राष्ट्रीय प्रसव लाभ योजना, शिक्षा सहयोग योजना, सामूहिक जीवन बिमा योजना, रोजगार गारंटी योजना, प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना, खाद्य सुरक्षा कानून न जाने ऐसी कितनी योजनाएं हैं, जो गरीबी खत्म करने के नाम पर चल रही हैं।
तो क्या 15 साल में भारत से खत्म हो जाएगी गरीबी?
कृषि, ग्रामीण, जैव-अर्थव्यवस्था और उपभोक्ता मामलों के जानकार डा. विजय सरदान कहते हैं कि 2030 तक गरीबी खत्म कर नवजार सहित सभी लोगों के लिए पूरे साल सुरक्षित, पोषणयुक्त और पर्याप्त भोजन उपलब्धता को सुनिश्चित करना बहुत अच्छा लक्ष्य है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि विकासशील और अविकसित देशों के पास इस एजेंडे को आगे ले जाने के लिए संसाधन कहां हैं। यह देश पहले ही संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं और मौजूदा लक्ष्यों को हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वे इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कैसे संसाधनों को जुटाएंगे।
खाद्यानों की उपलब्धता बढ़ाकर हो सकते हैं एक पंथ दो काज
डा. सरदाना के मुताबिक सरकार को खाद्यानों का उत्पादन बढ़ाकर और इसे आम आदमी तक वहन करने योग्य कीमतों पर पहुंचाने के लिए एक रणनीति बनाने की आवश्यकता है। इससे जहां एक ओर पूरे देश में सबको खाद्य सुरक्षा देने का सपना पूरा हो सकेगा वहीं दूसरी ओर कुल आय का एक छोटा हिस्सा ही खाद्य जरूरतों पर खर्च होने के बाद अन्य जरूरतों के लिए पैसा बच सकेगा। जो गरीबी मिटाने में कारगर साबित होगा। खाद्य की उपलब्धता आयात पर निर्भर न रहकर बल्कि अपने देश में तमाम टेक्नोलॉजी आदि के इस्तेमाल से बढ़ाने की जरूरत है। साथ ही खाद्यानों में केवल गेंहू और चावल ही नहीं बल्कि संतुलित आहार में जरूरी हर खाद्यान का ध्यान रखना होगा।