संयुक्त राष्ट्र की संस्था का अनुमान, 2021 में भारतीय अर्थव्यवस्था में दिखेगा मजबूत सुधार
भारतीय अर्थव्यवस्था में कोरोना वायरस महामारी के कारण 2020 में 6.9 प्रतिशत गिरावट आने का अनुमान है, लेकिन 2021 में इसमें पांच प्रतिशत वृद्धि के साथ ‘‘मजबूत सुधार’’ का अनुमान है।
संयुक्त राष्ट्र। भारतीय अर्थव्यवस्था में कोरोना वायरस महामारी के कारण 2020 में 6.9 प्रतिशत गिरावट आने का अनुमान है, लेकिन 2021 में इसमें पांच प्रतिशत वृद्धि के साथ ‘‘मजबूत सुधार’’ का अनुमान है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में यह कहा गया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का नया बजट मांग बढ़ाने को प्रोत्साहनों पर जोर देता है जिसमें सार्वजनिक निवेश बढ़ाने के उपाय किये गये हैं।
संयुकत राष्ट्र व्यापार एवं विकास सम्मेलन द्वारा व्यापार और विकास रिपोर्ट 2020 की इस अद्यतन रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में इस साल 2021 में 4.7 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है। यह इससे पहले सितंबर 2020 में लगाये गये 4.3 प्रतिशत के अनुमान से अधिक है। अमेरिका की अर्थव्यवस्था में मजबूत सुधार आने का इसमें योगदान होगा। अमेरिका में टीकारण अभियान में तेजी और 1,900 अरब डालर के नये प्रोत्साहन पैकेज से उपभोक्ता खर्च बढ़ने का आर्थिक गतिविधियों पर असर दिखाई देगा।
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इस रिपोर्ट में वर्ष 2020 को अप्रत्याशित बताया गया है। इसमें कहा गया है कि हाल के वर्षों में वायरस फैलने को लेकर चेतावनी समय समय पर आती रही है लेकिन किसी को भी कोविड- 19 इसके दुनियाभर में होने वाले खतरनाक प्रभाव की किसी को उम्मीद नहीं थी। भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीउीपी) में 2020- 21 में 6.9 प्रतिशत गिरावट का अनुमान है लेकिन उसके बाद 2021 में इसमें पांच प्रतिशत वृद्धि रिकार्ड किये जाने का भी अनुमान व्यक्त किया गया है। इससे पहले अंकटाड की सितंबर 2020 की रिपोर्ट में कहा गया था कि भारतीय अर्थव्यवस्था में 2020 में 5.9 प्रतिशत गिरावट आयेगी और 2021 में 3.9 प्रतिशत तेजी आयेगी।
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अंकटाड ने कहा, ‘‘वर्ष 2020 में भारत की वृद्धि का प्रदर्शन हमारी मध्य-2020 की उम्मीद से कम रहा है। इस दौरान वास्तविक वित्तीय प्रोत्साहन शुरुआती घोषणाओं से कम रहे जिसमें महामारी से राहत पाने के लिये सार्वजनिक व्यय में बड़ी वृद्धि की बात कही गई थी।’’ संयुक्त राष्ट्र की इस एजेंसी का कहना है कि भारत द्वारा अपनाये गये राहत उपाय न केवल आकार में बहुत छोटे रहे हैं बल्कि यह आपूर्ति पक्ष की अड़चनों को दूर करने और नकदी समर्थन उपलब्ध कराने पर केन्द्रित रहे। इनमें समग्र मांग समर्थन पर ध्यान नहीं दिया गया।