ठंडी पड़ी त्रिपुरा की चाय, 1965 पाकिस्तान युद्ध के बाद से कर रहा है बांग्लादेशी खरीदारों का इंतजार
छोटा से राज्य त्रिपुरा में चाय उत्पादन का का इतिहास एक सदी लंबा है। उसकी इच्छा है कि उसके चाय की बांग्लादेश में फिर से नीलामी हो।
अगरतला। छोटा से राज्य त्रिपुरा में चाय उत्पादन का का इतिहास एक सदी लंबा है। उसकी इच्छा है कि उसके चाय की बांग्लादेश में फिर से नीलामी हो। त्रिपुरा में चाय उत्पादक पड़ोसी बांग्लादेश के श्रीमंगल चाय नीलामी केंद्र में चाय बेचना चाहते हैं। यह स्थान, त्रिपुरा के उत्तरी सीमा से सिर्फ 10 किलोमीटर दूर है। त्रिपुरा चाय विकास निगम (टीटीडीसी) के अध्यक्ष संतोष साहा ने कहा, ‘‘त्रिपुरा राज्य में कोई नीलामी केंद्र नहीं है।
त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब ने भारत सरकार से बांग्लादेश के साथ इस मुद्दे को उठाने के लिए कहा है ताकि त्रिपुरा के बागान, श्रीमंगल में अपनी उपज की नीलामी कर सकें, जो त्रिपुरा सीमा के पास है।’’ त्रिपुरा में लगभग 58 चाय बागान हैं - जिनमें से 42 व्यक्तिगत स्वामित्व वाले, 13 सहकारी समितियों द्वारा संचालित और तीन टीटीडीसी द्वारा संचालित हैं। इसके अलावा, इस सीमावर्ती राज्य में लगभग 3,000 छोटे चाय उत्पादक हैं।
दिलचस्प बात यह है कि त्रिपुरा के बागानों का नेतृत्व भारतीय चाय उद्यमियों ने किया था क्योंकि राज्य के तत्कालीन शासक महाराजा बीरेंद्र किशोर माणिक्य की नीति थी कि ब्रिटिश बागान मालिक उनके राज्य में जमीन नहीं खरीद पायें और उन्हें जमीन खरीदने की अनुमति नहीं थी। मौजूदा समय में, यहां के चाय उत्पादक अपनी उपज को बेचने के लिए गुवाहाटी और कलकत्ता में दूर-दूर के नीलामी केंद्रों पर निर्भर करते हैं, जिससे लागत बढ़ जाती है। पाकिस्तान के साथ 1965 के युद्ध तक जब दोनों पड़ोसी देशों के बीच यात्रा और व्यापार आसान था।
त्रिपुरा की चाय को चटगांव नीलामी केंद्र के माध्यम से बेचा जाता था और वहां बंदरगाह से निर्यात किया जाता था। युद्ध और बाद में व्यापार संबंधों में आई खटास ने इस व्यवस्था को बाधित कर दिया। लक्ष्मी चाय कंपनी के प्रबंधक मानस भट्टाचार्य ने कहा, त्रिपुरा में चाय नीलामी केंद्र की अनुपस्थिति देश के मुख्य बाजारों में उपज भेजने या विदेशों में चाय निर्यात करने में एक बड़ी बाधा है। बागान मालिकों को लगता है कि अगर वे श्रीमंगल नीलामी केंद्र के माध्यम से चाय बेच सकें, तो उसका निर्यात बांग्लादेश के आशुगंज या चटगांव बंदरगाहों के माध्यम से भी हो सकता है।
साहा ने कहा कि त्रिपुरा में चाय उत्पादन के लिए कृषि-जलवायु की स्थिति अनुकूल है। उन्होंने कहा कि अब हमें असम और दार्जिलिंग चाय के साथ-साथ अन्य स्थापित ब्रांडों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए त्रिपुरा चाय के लिए लोगो को मंजूरी मिल गई है। अधिकारियों ने कहा कि त्रिपुरा में चाय का उत्पादन वर्ष 1916 में उनाकोटी जिले के हीराचेरा चाय बागान में शुरु हुआ। नवीनतम रिपोर्टों के अनुसार, राज्य में 6,885 हेक्टेयर भूमि पर चाय की खेती होती है।