नई दिल्ली। दूरसंचार नियामक ट्राई ने टेलीकॉम ऑपरेटर्स से रेडियो लिंक टाइमआउट तकनीक का ब्यौरा मांगेगा। इस तकनीक का इस्तेमाल कथित तौर पर कॉलड्राप को छुपाने के लिए किया जा रहा है, परिणामस्वरूप ग्राहकों को अधिक बिल चुकाना पड़ रहा है।
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के चेयरमैन आरएस शर्मा ने कहा, कोई भी जांच बिठाने से पहले हम टेलीकॉम ऑपरेटर्स से रेडियो लिंक टेक्नोलॉजी (आरएलटी) का ब्यौरा मांगेंगे। यह ब्यौरा उन मानदंडों के दायरे में मांगा जाएगा, जो कि यहां अपनाए जा रहे हैं और ऐसे मानदंड जो कि पिछले एक साल के दौरान अपनाए जाते रहे हैं। ट्राई द्वारा दिल्ली में किए गए ताजा परीक्षण के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र की दूरसंचार कंपनी एमटीएनएल नेटवर्क आधारित गुणवत्ता पूर्ण सेवाओं के सभी मानदंडों पर असफल साबित हुई।
दिल्ली की परीक्षण रिपोर्ट के अनुसार एयरसेल और वोडाफोन दूसरी दूरसंचार कंपनियों के मुकाबले आरएलटी का अधिक इस्तेमाल कर रहीं हैं। आरएलटी यानी रेडियो लिंक टाइमआउट एक ऐसा मानदंड है, जिसमें यह तय किया जाता है कि सिगनल गुणवत्ता के एक सीमा से ज्यादा कमजोर पड़ जाने के बावजूद कितने समय तक कॉल को बरकरार रखा जा सकता है। एक आधिकारिक सूत्र के अनुसार कुछ टेलीकॉम ऑपरेटर्स इस तकनीक का इस्तेमाल कॉलड्राप को छुपाने के लिए कर रहे हैं, जिससे कि ग्राहकों को अधिक बिल का बोझ उठाना पड़ता है। शर्मा ने कहा, आज हैदराबाद और भोपाल की परीक्षण रिपोर्ट को जनता के समक्ष रखा जायेगा। उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें कॉलड्राप के लिए टेलीकॉम कंपनियों को ग्राहकों को एक रुपए प्रति कॉल और एक दिन में अधिकतम तीन रुपए के हिसाब से मुआवजा देने का नियम रखा गया था।
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