भारत में बैड लोन की समस्या हो सकती समाप्त, राजन ने तीन साल के कार्यकाल में की है डीप सर्जरी
भारतीय बैंकों ने पहले ही अपने बैड (तनावग्रस्त) लोन को नॉन-परफॉर्मिंग असेट (एनपीए) श्रेणी में डाल दिया है या उन्हें वॉच लिस्ट में रख लिया है।
नई दिल्ली। भारतीय बैंकों पर बैड लोन का जो बोझ है वह कुछ हद तक हल्का हो सकता है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर रघुराम राजन द्वारा बड़े पैमाने पर बैड लोन को साफ करने की शुरू की गई प्रक्रिया के छह महीने बाद नोमूरा ने अपनी समीक्षा रिपोर्ट में पाया है कि भारतीय बैंकों ने पहले ही अपने तनावग्रस्त लोन को नॉन-परफॉर्मिंग असेट (एनपीए) श्रेणी में डाल दिया है या उन्हें वॉच लिस्ट में रख लिया है। एनपीए एक ऐसा लोन होता है, जिसमें इंटरेस्ट और प्रिंसीपल का भुगतान 90 दिनों से ज्यादा समय से न किया गया हो।
नोमूरा ने 23 जून को जारी अपनी रिपोर्ट में कहा कि, हमारे विस्तृत विश्लेषण से यह भरोसा मिलता है कि हम एनपीए के उच्चतम शिखर पर है, विशेषकर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए, जहां तकरीबन तनावग्रस्त क्षेत्रों में दिए गए उनके कुल लोन का 30-50 फीसदी हिस्सा या तो एनपीए है या रिस्ट्रक्चर्ड है। भारत में बैंकों को अपनी बैलेंस शीट पर तनावग्रस्त संपत्तियों को साफ करने हेतु प्रावधान करने के लिए मार्च 2017 का समय दिया गया है। आरबीआई ने इंटेनसिव असेट रिव्यू (एक्यूआर) के बाद यह निर्देश जारी किया है। 13 लाख करोड़ रुपए के बैड लोन में से अधिकांश लोन वैश्विक आर्थिक मंदी के दौरान दिया गया था। अर्थव्यवस्था में कम मांग और प्रोजेक्ट की धीमी गति-विशेषकर इंफ्रास्ट्रक्चर, पावर और मेटल सेक्टर में- की वजह से कर्जदारों के लिए लोन चुकाना मुश्किल हो गया।
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गहरी सर्जरी
आरबीआई में अपने कार्यकाल के दौरान राजन का बैड लोन पर कार्यवाही करना प्रमुख कदम रहा। उन्होंने कई बार गंभीर तरीके से बढ़ते बैड लोन पर मुखर होकर देश के समक्ष अपनी बात रखी। राजन ने 22 जून को दिए अपने एक भाषण में कहा कि बैंक बैलेंश सीट की सफाई और क्रेडिट ग्रोथ की मरम्मत बहुत महत्वपूर्ण है और ग्रोथ एजेंडे के यह प्रमुख कारक भी हैं। सरकार और आरबीआई अपने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की इस मुश्किल लेकिन महत्वपूर्ण कार्य में मदद कर रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि अच्छी खबर यह है कि बैंक इस सफाई में अपना उत्साह दिखा रहे हैं और प्रोजेक्ट्स के पुनर्वास के लिए उनके अनिच्छुक प्रमोटर्स को आवश्यक मदद भी दे रहे हैं। मैं यह जानता हूं कि यह प्रक्रिया काम कर रही है, इसलिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक जल्द ही इस अर्थव्यवस्था को जरूरी वित्तीय मदद देना शुरू कर देंगे।
नोमूरा की स्टडी बताती है कि एक्यूआर के बाद, अधिकांश बैंक नियामक के निर्देशानुसार काम कर रहे हैं और तनावग्रस्त लोन को मान्यता देना लगभग अब खत्म होने के कगार पर है। उदाहरण के तौर पर, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर कुल एनपीए और रिस्ट्रक्चर्ड संपत्ति का बोझ कुल लोन का 10 से 17 फीसदी के बीच है। यहां तक कि 2 से 3 फीसदी लोन को वॉच-लिस्ट में रखा गया है। हालांकि, यह आसान नहीं होगा। बैंकों को इससे तगड़ा झटका लगा है। 31 मार्च 2016 को समाप्त तिमाही के दौरान 20 भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को तकरीबन 2 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है। लेकिन इस तरह का बड़ा नुकसान भविष्य में होने वाले किसी बड़े नुकसान को रोकने के लिए जरूरी था।