शहरों में नहीं गांवों में है भारत के अखबारों का भविष्य
दुनियाभर में अखबार इंडस्ट्री दम तोड़ रही है, वहीं भारत की 30,000 करोड़ रुपए के प्रिंट मीडिया इंडस्ट्री का भविष्य बेहतर दिखाई पड़ रहा है।
नई दिल्ली। एक ओर जहां दुनियाभर में अखबार इंडस्ट्री दम तोड़ रही है, वहीं भारत में अखबारों का भविष्य बेहतर होता दिखाई दे रहा है। एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत की 30,000 करोड़ रुपए के प्रिंट मीडिया इंडस्ट्री अगले तीन साल तक सालाना 8 फीसदी की दर से ग्रोथ करने के लिए तैयार है। हालांकि, यह ग्रोथ अंग्रेजी भाषा के अखबारों की नहीं, बल्कि क्षेत्रीय भाषा के अखबारों की है। फिच रेटिंग्स की यूनिट और क्रेडिट रेटिंग एजेंसी इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2016-17 में स्थानीय भाषा के प्रिंट मीडिया की ग्रोथ 10-12 फीसदी रहेगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह ग्रोथ रेट अंग्रेजी भाषा के प्रिंट मीडिया की ग्रोथ से ज्यादा होगी। क्षेत्रीय भाषाओं के अखबार और मैग्जींस अंग्रेजी प्रिंट मीडिया पर हावी हो जाएंगी। अंग्रेजी प्रिंट मीडिया पहले ही डिजिटल मीडिया सामग्री की बढ़ती स्वीकार्यता की वजह से मुश्किल दौर से गुजर रही है।
भारत की 1.2 अरब जनसंख्या में केवल 10 फीसदी लोग अंग्रेजी बोलते हैं। यही कारण है जो क्षेत्रीय मीडिया के आगे बढ़ने की और पुष्टि करता है। अभी भी यहां एक विशाल बाजार है, जिसमें ग्रोथ की भारी संभावना है। इसके अलावा देश के ग्रामीण इलाकों में साक्षर दर में लगातार सुधार हो रहा है। भारत की ताजा जनगणना के अनुसार 1991 में ग्रामीण इलाकों की साक्षर दर 45 फीसदी थी, जो 2011 में बढ़कर 69 फीसदी हो गई है।
सर्कुलेशन और रेवेन्यू ग्रोथ इंडिया रेटिंग्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2016-17 में क्षेत्रीय भाषाओं के प्रिंट मीडिया का सर्कुलेशन रेवेन्यू भी 8-10 फीसदी की दर से बढ़ेगा। ऐसा कीमतें बढ़ने के साथ सर्कुलेशन बढ़ने के कारण होगा। इसके अलावा इन मीडिया कंपनियों की लागत भी कम होगी, क्योंकि वैश्विक स्तर पर न्यूजप्रिंट की कीमतें नीचे आ रही हैं, इस वजह से इनका मुनाफा भी बढ़ेगा। रिपोर्ट के मुताबिक दैनिक अखबार के प्रकाशन में आने वाले कुल खर्च में 40 फीसदी हिस्सा न्यूजप्रिंट (प्रिंटिंग पेपर) का होता है।
वहीं दूसरी ओर, विज्ञापन रेवेन्यू, जो अखबारों के लिए कमाई का सबसे बड़ा जरिया है, सुस्त है। कॉरपोरेट्स का विज्ञापन खर्च प्रमुख रूप से जीडीपी ग्रोथ पर निर्भर करता है। इसलिए क्योंकि भारत में इकोनॉमिक ग्रोथ लगातार सुधार की तरह बढ़ रही है ऐसे में विज्ञापन रेवेन्यू में रिकवरी आने की पूरी उम्मीद है।
इंडिया रेटिंग्स के मुताबिक विज्ञापन खर्च में ई-कॉमर्स सेक्टर की प्रमुख भूमिका होगी। भारत के ऑनलाइन विक्रेताओं के लिए ग्रामीण ग्राहक ही अब सबसे बड़े अवसर हैं। फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, अमेजन, क्विकर और ओएलएक्स जैसे ई-टेलर्स और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म सभी माध्यमों पर विज्ञापन दे रहे हैं। एसोचैम की रिपोर्ट के मुताबिक भारत का ई-कॉमर्स सेक्टर 2016 में 65 फीसदी की दर से बढ़ेगा और इसके इस साल 38 अरब डॉलर (2.5 लाख करोड़ रुपए) तक पहुंचने की उम्मीद है।