नई दिल्ली। सरकार की ओर से बनाई गई एक समिति ने विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों पर 6 से 8 फीसदी टैक्स लगाने की सिफारिश की है। इस टैक्स को ‘इक्वलाइजेशन लेवी’ नाम दिया गया है। दरअसल सरकार किसी विदेशी कंपनी पर सीधे इनकम टैक्स नहीं लगा सकती है। इसलिए लेवी का रास्ता अपनाएगी, जिससे किसी देश से टैक्स संधि का उल्लंघन नहीं होगा। हालांकि इससे उन तमाम सर्विसेज की लागत बढ़ जाएंगी, जो ऑनलाइन दी जाती है। जी20 और ओईसीडी देश इस तरह के टैक्स को पहले ही मंजूरी दे चुके हैं।
इन सर्विसेज पर टैक्स का प्रस्ताव
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने सोमवार को ऑनलाइन एडवरटाइजिंग और क्लाउड कंप्यूटिंग से लेकर सॉफ्टवेयर डाउनलोड्स और वेब होस्टिंग की सर्विसेज पर टैक्स लगाने की सिफारिश की है। इसके अलावा डिजाइनिंग, वेबसाइट मेंटिनेंस, ईमेल, ब्लॉग, वस्तुओं या सेवाओं की ऑनलाइन बिक्री की सुविधा और ऑनलाइन पेमेंट कलेक्शन पर टैक्स लगेगा। ऑनलाइन म्यूजिक, मूवी, गेम्स या सॉफ्टवेयर एप्लिकेशन डाउनलोड पर भी 6 से 8 फीसदी लेवी लगाने को कहा है।
इनकम पर टैक्स नहीं इक्विलाइजेशन लेवी
एक्सपर्ट्स के मुताबिक यह लेवी इनकम पर टैक्स नहीं है। इसलिए इससे किसी देश से कर संधि का उल्लंघन नहीं होगा। समिति ने विथहोल्डिंग टैक्स लगाने से मना किया है क्योंकि इसके लिए विभिन्न देशों के साथ कर संधि में बदलाव करने होंगे। अर्न्स्ट एंड यंग के पार्टनर राकेश जरीवाला ने कहा, ‘सरकार को यह साफ करना चाहिए कि किन ट्रांजैक्शन पर इक्विलाइजेशन लेवी लगेगी। वर्ना किसी खास ट्रांजैक्शन पर इस लेवी के साथ आयकर भी लिया जा सकता है। यह दो बार टैक्स लेने जैसा होगा।
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