टैक्स विवाद समाधान योजना के लिए आगे नहीं आई बड़ी कंपनियां, केवल 1,200 करोड़ रुपए जुटे
सरकार की महत्वकांक्षी टैक्स विवाद समाधान योजना को लेकर कंपनियों का रूख एक तरह से ठंडा रहा। इसके तहत केवल 1,200 करोड़ रुपए की वसूली हो सकी है।
नई दिल्ली। सरकार की महत्वकांक्षी टैक्स विवाद समाधान योजना को लेकर कंपनियों का रूख एक तरह से ठंडा रहा। बड़ी राशि के कर विवादों में उलझी कंपनियों के इस योजना के तहत समाधान के लिए आगे न आने से इसके तहत केवल 1,200 करोड़ रुपए की वसूली हो सकी है। पिछली तिथि से कराधान से जुड़े हजारों करोड़ रुपए के कर विवादों में उलझी वोडाफोन और केयर्न एनर्जी जैसी कंपनियों ने सरकार के इस प्रस्ताव की तरह रूख नहीं किया।
वित्त मंत्री अरूण जेटली ने 2016-17 के बजट में प्रत्यक्ष कर विवाद समाधान योजना की घोषणा की। इसमें न केवल पूर्व की तिथि से कराधान के मामले बल्कि करीब 2.6 लाख लंबित कर मामलों के समाधान पर जोर दिया है जिसमें 5.16 लाख करोड़ रुपए फंसे पड़े हैं। योजना एक जून 2016 को खुली और एक बार योजना की मियाद बढ़ने के बाद इस साल 31 जनवरी को बंद हुई। इसके तहत कर मामले से जुड़े मूल राशि का भुगतान करने पर ब्याज एवं जुर्माने में छूट दी गई है।
वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, अप्रत्यक्ष कर में इसी प्रकार की योजना है जिसके तहत अगर किसी कंपनी के खिलाफ कर विवाद है कि वह मूल राशि का भुगतान कर मामले का निपटान कर सकती है। इस योजना के जरिये अप्रत्यक्ष कर संग्रह काफी अधिक नहीं रहा। प्रत्यक्ष कर में यह 1,200 करोड़ रुपए था। पूर्व की तिथि से कराधान मामले में कोई भी कंपनी मूल राशि देकर मामले के निपटान के लिये आगे नहीं आई।
सरकार इस योजना के जरिये वोडाफोन समूह और केयर्न एनर्जी जैसी बड़ी कंपनियों से जुड़े पूर्व की तिथि से कराधान के मामले के निपटान की उम्मीद कर रही थी। साथ ही उसे अन्य कर विवाद मामले में एक तिहाई के समाधान की उम्मीद थी। योजना के तहत पूर्व की तिथि से कराधान मामले में ब्याज और जुर्माने से तभी छूट मिलती जब संबंधित कंपनी सरकार के खिलाफ सभी न्यायायिक मंचों से मामले को वापस ले लेती।
ब्रिटेन की केयर्न एनर्जी पर 2006 में भारत में अपनी इकाई के सूचीबद्ध होने से पहले व्यापार पुनर्गठन के मामले में 10,247 करोड़ रुपए की कर मांग है। ब्याज को लेकर कंपनी पर कुल कर बकाया 29,000 करोड़ रुपए बनता है। वहीं ब्रिटेन की दूरसंचार कंपनी वोडाफोन से 14,200 करोड़ रुपए का कर, ब्याज एवं जुर्माने की मांग की गयी है। यह मांग 2007 में हच्चिसन व्हामपोआ के मोबाइल फोन कारोबार में 11 अरब डॉलर में 67 प्रतिशत हिस्सेदारी के अधिग्रहण से जुड़ी है। दोनों कंपनियों ने कर मांग को लेकर चिंता जताई और मामले को अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता में ले गई है।