नई दिल्ली। उद्योग संगठन फिक्की ने कहा है कि किसी कंपनी के निदेशकों को उनकी निजी संपत्ति बेचने से दूर रखने का उच्चतम न्यायालय का हाल का फैसला सीमित दायित्व (लिमिटेड लायबिलिटी) की अवधारणा का अतिक्रमण हो सकता है। संगठन ने एक बयान जारी कर कहा है कि हर वह इंसान जो कानून का उल्लंघन करे, देश के कानून के तहत उसे सजा मिलनी चाहिए लेकिन सीमित दायित्व के सिद्धांत का उल्लंघन देश में उद्यमिता एवं कारोबारी विकास के लिए नकारात्मक परिणाम ला सकता है।
उच्चतम न्यायालय ने अपने एक हालिया निर्णय में संकटग्रस्त कंपनी जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड के 13 निदेशकों को अपनी निजी संपत्तियां नहीं बेचने का निर्देश देते हुए कंपनी को दिसंबर अंत तक 275 करोड़ रुपए का भुगतान करने को कहा है।
फिक्की ने कहा कि,
निदेशकों एवं उनके परिजनों को उनकी अपनी संपत्ति बेचने से रोकना एक तरह से उनकी संपत्तियां जब्त कर लेना जैसा है।
उद्योग मंडल ने कहा है कि इस मामले में सीमित दायित्व के सिद्धांत पर ध्यान देने के साथ ही न्यायिक निर्णय के समय सुरक्षित और असुरक्षित देनदारियों के बीच अंतर पर भी गौर किया जाना चाहिए।
सीमित दायित्व को यहां इस तरह परिभाषित किया जा सकता है कि यह एक तरह की देनदारी होती है जो कि भागीदारी में किए गए निवेश अथवा एक सीमित दायित्व की कंपनी में किए गए निवेश से अधिक नहीं होती है। इसका तात्पर्य यह है कि कोई शेयरधारक किसी कंपनी की वृद्धि में पूरी तरह से भागीदार हो सकता है लेकिन उसकी देनदारी उसके द्वारा कंपनी में किए गए निवेश तक ही सीमित होती है, चाहे कंपनी दिवालिया हो जाती है या उसके ऊपर कर्ज देनदारी होती है।
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