देश में बढ़ा रबी फसल की बुवाई का रकबा, चीनी उत्पादन 66 लाख टन तक पहुंचा
बेहतर मानसून और अधिक समर्थन मूल्य के प्रोत्साहन से चालू रबी फसल में गेहूं बुवाई का रकबा आठ प्रतिशत बढ़कर 292.39 लाख हेक्टेयर हो गया।
नई दिल्ली। बेहतर मानसून और अधिक समर्थन मूल्य के प्रोत्साहन से चालू रबी फसल में गेहूं बुवाई का रकबा एक साल पहले इसी अवधि की तुलना में आठ प्रतिशत बढ़कर 292.39 लाख हेक्टेयर हो गया। वहीं दूसरी ओर दलहन बुवाई का रकबा 13 प्रतिशत बढ़कर 148.11 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है।
हालांकि धान और मोटे अनाजों की बुवाई पिछले साल से कम चल रही है। राज्यों से प्राप्त प्राथमिक रिपोर्ट के अनुसार 30 दिसंबर 2016 तक रबी फसलों की बुवाई का रकबा 582.87 लाख हेक्टेयर था, जो रकबा वर्ष 2015 में इसी समय तक 545.46 लाख हेक्टेयर था।
- गेहूं की बुवाई 292.39 लाख हेक्टेयर में की गई है, जो पिछले वर्ष अब तक 271.46 लाख हेक्टेयर थी।
- दलहन की बुवाई बढ़ कर 148.11 लाख हेक्टेयर तक पहुंची है, जो एक साल पहले 131.21 लाख हेक्टेयर थी।
- तिलहनों का रकबा बढ़कर 79.48 लाख हेक्टेयर हो गया है, जो एक साल पहले 71.83 लाख हेक्टेयर था।
- धान की बुवाई घटकर चालू रबी सत्र में अब तक 10.68 लाख हेक्टेयर तक है, जो पिछले वर्ष की समान अवधि में 14.77 लाख हेक्टेयर थी।
- मोटे अनाजों की बुवाई भी घटी है और अब तक 52.21 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में पहुंची है।
- एक साल पहले इसी दौरान इनका रकबा 56.29 लाख हेक्टेयर था।
चीनी उत्पादन अभी 66 लाख टन
चालू विपणन वर्ष में अब तक चीनी उत्पादन 66 लाख टन हुआ है। अगले वर्ष सितंबर में पूरा होने वाले इस विपणन वर्ष में चीनी उत्पादन घटकर 2.25 करोड़ टन रह जाने का अनुमान है। भारत में चीनी उत्पादन विपणन वर्ष 2015-16 (अक्टूबर से सितंबर) में 2.51 करोड़ टन था। भारत चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है।
- चालू चीनी सत्र 2016-17 के दौरान देश के चीनी मिलों ने पेराई अभियान धीमी गति से शुरू किया और अभी तक 66 लाख टन उत्पादन है।
- चीनी उत्पादन सत्र के अंत तक करीब 2.25 करोड़ टन का होने की उम्मीद है।
- पुराने 77.1 लाख टन के स्टॉक के साथ चीनी की कुल उपलब्धता करीब 2.5 करोड़ टन की अनुमानित घरेलू आवश्यकता को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगा।
- अगले चीनी सत्र (2017-18) में चीनी उत्पादन बेहतर होने की उम्मीद है और इसके जल्द शुरू होने की उम्मीद है।
- इसलिए भारत में घरेलू स्तर पर उत्पादित किए गए चीनी की कोई कमी नहीं होगी।