मुंबई। निवेशकों के हितों के संरक्षण के लिए भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने म्यूचुअल फंड्स के जोखिम वाले कॉरपोरेट बांड्स में निवेश के नियमों को सख्त कर दिया है। एकल कंपनी के बांड में निवेश की सीमा को 10 फीसदी तक सीमित किया गया है। इसके अलावा किसी एक क्षेत्र में निवेश की सीमा को भी 30 से घटाकर 25 फीसदी किया गया है। वहीं ऋण प्रतिभूतियों में म्यूचुअल फंड्स के निवेश के लिए समूह स्तर की 20-25 फीसदी सीमा पेश की गई है।
ऋण योजनाओं में म्यूचुअल फंड्स के निवेश की सीमा घटाने के मुद्दे पर नियामक का ध्यान जेपी मॉर्गन म्यूचुअल फंड के एमटेक ऑटो की ऋण प्रतिभूतियों में निवेश की वजह से संकट में फंसने पर गया। कुछ अन्य फंड घरानों को भी इसी तरह की समस्याओं को झेलना पड़ा। सेबी के निदेशक मंडल की सोमवार को हुई बैठक में म्यूचुअल फंड्स के निवेश की सीमा पर विचार किया गया और कई व्यापक बदलावों को मंजूरी दी गई। फंड घरानों को इसके लिए पर्याप्त समय दिया जाएगा, जिससे वे इस बात की पुष्टि कर सकें कि उनकी योजनाएं नए निवेश अंकुशों का अनुपालन करती हैं।
ग्रीन बांड्स को जारी, सूचीबद्ध करने के नए नियम
अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में निवेश के लिए ग्रीन बांड्स के जरिये धन जुटाने में कंपनियों की मदद के लिए सेबी ने इस तरह की प्रतिभूतियों को जारी करने और इन्हें शेयर बाजारों में सूचीबद्ध कराने के नए नियमों को मंजूरी दे दी है। यह कदम भारत में 2030 तक जलवायु परिवर्तन कार्रवाई के लिए 2,500 अरब डॉलर का भारी वित्तपोषण जुटाने की जरूरत के मद्देनजर उठाया गया है। इससे निवेशकों को जानकारी के आधार पर निवेश के बारे में फैसले लेने तथा खुलासा अनिवार्यताओं में समानता लाने में मदद मिलेगी। सेबी ने कहा कि ग्रीन बांड्स को जारी करने और इस सूचीबद्धता की निगरानी सेबी के ऋण प्रतिभूतियों पर नियमनों के तहत की जाएगी। लेकिन ग्रीन बांड जारी करने वालों को और अधिक खुलासा करना होगा। सेबी समय-समय पर ग्रीन बांड की परिभाषा को स्पष्ट करता रहेगा।
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