मुंबई। कुछ म्यूचुअल फंड हाउसेस द्वारा शेयर स्कीम के बदले लोन देने के मामले को कठोरता से लेते हुए बाजार नियामक सेबी ने गुरुवार को प्रवर्तकों द्वारा गिरवी रखे जाने वाले शेयरों से संबंधित खुलासा नियमों को और कठोर बनाने की घोषणा की है।
शेयर स्कीम के बदले लोन में डेट म्यूचुअल फंड्स द्वारा प्रवर्तक शेयरों के बदले कम ज्ञात/निम्न-रेटिाग कंपनियों के डेट पेपर्स में निवेश शामिल है। बोर्ड बैठक के बाद जारी किए गए नए निर्देशों के अनुसार, सेबी ने कहा है कि प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष किसी भी तरीके से गिरवी रखे जाने वाले शेयरों को भारग्रस्त माना जाएगा।
इस बैठक में वोटिंग राइट्स पर नए नियम भी जारी किए गए हैं। अब किसी सेक्टर में लिक्विड फंड्स का 20 प्रतिशत ही निवेश किया जा सकेगा। ये निवेश सीमा 25 प्रतिशत से घटाकर 20 प्रतिशत की गई है।
अब किसी कंपनी को 20 प्रतिशत से ज्यादा शेयर गिरवी रखने पर कारण बताना जरूरी होगा। ऑडिटर के लिए भी किसी अघोषित गड़बड़ी की जानकारी देना अनिवार्य होगा। म्यूचुअल फंड इस मामले में कंपनियों से स्टैंडस्टिल करार नहीं कर सकते। स्टैंडस्टिल करार करने पर म्यूचुअल फंडों पर सख्ती होगी। बायबैक पर कंसो डेट-इक्विटी रेश्यो भी जरूरी होगा। सेबी ने ये भी बताया है कि कुछ क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की गई है।
सबसे बड़े एएमसी, एचडीएफसी असेट मैनेजमेंट कंपनी ने कहा था कि वह डीएचएफएल से 500 करोड़ रुपए के एनसीडी की पुर्नखरीद करेगी, जिन्हें इसके फिक्सड इनकम प्लान निवेशकों द्वारा समय पर भुनाया नहीं जा सका। इसका मतलब है कि एचडीएफसी एएमसी के निवेशकों को 500 रुपए का झटका लगेगा।
हालांकि कोटक एएमसी, जो समय पर अपने यूनिट को भुना नहीं पाई है, ने अपने फिक्स्ड इनकम प्लान निवेशकों से भुगतान के लिए एक और साल तक इंतजार करने के लिए कहा है। सेबी ने कहा है कि किसी कंपनी के गिरवी रखे शेयरों की मात्रा 20 प्रतिशत से अधिक होती है, तब कंपनी के ऑडिट पैनल को इसकी जानकारी देना आवश्यक होाग।
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