नई दिल्ली। स्टार्टअप वित्तपोषण को बढ़ावा देने के लिए भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने एंजल फंड्स द्वारा निवेश के अपने नियमों में ढील दी है। इसमें उनको पांच साल तक पुरानी इकाइयों में निवेश की अनुमति देना भी शामिल है।
- इसके अलावा एंजल फंड्स के लिए लॉक इन अवधि को तीन साल से घटाकर एक साल किया गया है।
- साथ ही उनके लिए न्यूनतम निवेश की सीमा को भी 50 लाख रुपए से घटाकर 25 लाख रुपए किया गया है।
- एंजल फंड्स को एआईएफ की तर्ज पर अपने निवेश योग्य कोष का 25 प्रतिशत तक विदेशी उद्यम पूंजी उपक्रम में करने की अनुमति है।
- सेबी ने 4 जनवरी को जारी अधिसूचना में कहा है कि एक योजना में एंजल निवेशकों की ऊपरी सीमा को 49 से बढ़ाकर 200 किया गया है।
- नियामक ने सेबी (वैकल्पिक निवेश कोष) नियमन, 2012 में संशोधन किया है।
- इससे एंजल फंड्स के निवेश के लिए स्टार्टअप परिभाषा औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग (डीआईपीपी) द्वारा स्टार्टअप नीति में दी गई परिभाषा के अनुरूप हो गई है।
- इसी के अनुरूप एंजल फंड्स पांच साल के भीतर बने स्टार्टअप में निवेश कर सकते हैं। पहले यह सीमा तीन साल थी।
सेबी ने निजी इक्विटी फंड, प्रवर्तकों को निजी सौदे करने से रोका
निजी इक्विटी फंडों व सूचीबद्ध कंपनियों के प्रवर्तकों के बीच गुप्त लाभ भागीदारी समझौतों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए बाजार नियामक सेबी ने कहा है कि वे बोर्ड व आम शेयरधारकों की पूर्व मंजूरी के बिना इस तरह के समझौते नहीं करेंगे।
- सेबी ने इस बारे में कल एक अधिसूचना जारी की।
- ये प्रतिबंध सूचीबद्ध कंपनियों के कर्मचारियों, प्रबंधन में शामिल व्यक्तियों व निदेशकों पर लागू होंगे।
- वे अपनी तरफ से या किसी अन्य व्यक्ति की तरफ से ऐसे समझौते नहीं कर सकेंगे।
- इसके साथ ही बीते तीन साल के ऐसे सभी समझौतों की जानकारी शेयर बाजारों को देनी होगी।
- इस तरह के कुछ मामले सामने आए थे कि निजी इक्विटी फंडों ने सूचीबद्ध कंपनियों प्रवर्तकों, निदेशकों व अन्य प्रमुख आला अधिकारियों के साथ ऐसे मुआवजा समझौते किए हैं।
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