नयी दिल्ली। देश में 2011 में करीब 1.56 लाख करोड़ रुपये मूल्य की करीब 2.2 लाख आवासीय इकाइयों वाली परियोजनाओं की शुरूआत की गयी। सात बड़े शहरों में फैली इन परियोजनाओं का अभी पूरा होना बाकी है। जमीन-जायदाद के बारे में परामर्श देने वाली जेएलएल इंडिया ने कहा है।
जेएलएल के आंकड़ों के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र-दिल्ली की रीयल एस्टेट कंपनियां सबसे बड़ी चूककर्ता हैं क्योंकि मात्रा के हिसाब से उनकी हिस्सेदारी 71 प्रतिशत के करीब है। कुल 1,55,804 करोड़ रुपये मूल्य की 2,18,367 आवासीय इकाइयों के निर्माण में देरी हुई है। सात शहरों राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, बेंगलुरू, हैदराबाद और पुणे में फैली ये परियोजनाएं निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं।
जेएलएल इंडिया ने कहा कि 2.2 लाख इकाइयों में से करीब 30,000 इकाइयों के निर्माण से जुड़ी परियोजनाओं को रद्द कर दिया गया है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 86,824 करोड़ रुपेय मूल्य की 1,54,075 इकाइयां अटकी पड़ी हैं। वहीं मुंबई में 56,435 करोड़ रुपये मूल्य की 43,449 इकाइयों को पूरा होना अभी बाकी है।
जेएलएल के अनुसार कुल फंसी परियोजनाओं में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और मुंबई दोनों की हिस्सेदारी 91 प्रतिशत है। आंकड़ों के अनुसार चेन्नई में 4,474 करोड़ रुपये मूल्य की 8,131 इकाइयों के विनिर्माण में देरी हुई जबकि बेंगलुरू में 2,768 करोड़ रुपये मूल्य की 5,468 इकाइयां तथा पुणे में 3,718 करोड़ रुपये मूल्य की 4,765 इकाइयां अटकी पड़ी हैं। वहीं हैदराबाद में 1,297 करोड़ रुपये मूल्य की 2,095 इकाइयां जबकि कोलकाता में 228 करोड़ रुपये मूल्य की 384 आवास इकाइयां अटकी पड़ी हैं।
मकान खरीदारों को फ्लैट देने में देरी आवास क्षेत्र में मांग में नरमी का एक प्रमुख कारण है। लाखों मकान खरीदार जेपी समूह, आम्रपाली और यूनिटेक जैसी रीयल एस्टेट कंपनियों की रिहायशी आवासीय परियोजनाओं में अटके हुए हैं। मकान खरीदारों का संगठन फोरम फार पीपुल्स कलेक्टिव एफाट्र्स (एफपीसीई) के अध्यक्ष अभय उपाध्याय ने कहा कि परियोजनाओं में देरी के कारण देश भर में 5 लाख ग्राहक अटके पड़े हैं।
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