2020 से हर मौसम में कर सकेंगे लाहौल घाटी की यात्रा, परिवहन के लिए खुल जाएगी रोहतांग सुरंग
दुनिया की सबसे कठिन परिवहन परियोजनाओं में से एक रोहतांग सुरंग का निर्माण कार्य 2020 तक पूरा हो सकता है। समुद्र तल से 3000 मीटर ऊपर चल रही परियोजना के पूरे होने के बाद चारों तरफ से जमीन से घिरी लाहौल घाटी तक यहां से हर मौसम में जाया जा सकेगा।
मनाली। दुनिया की सबसे कठिन परिवहन परियोजनाओं में से एक रोहतांग सुरंग का निर्माण कार्य 2020 तक पूरा हो सकता है। समुद्र तल से 3000 मीटर ऊपर चल रही परियोजना के पूरे होने के बाद चारों तरफ से जमीन से घिरी लाहौल घाटी तक यहां से हर मौसम में जाया जा सकेगा। अपने तरह की सबसे महंगी और महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत घोड़े के खुर के आकार की 8.8 किलोमीटर लंबी रोहतांग सुरंग पिछले साल अक्टूबर में बन चुकी है।
सुरंग का 3978 मीटर हिस्सा हिमालय के रोहतांग दर्रे से होकर गुजरता है। इस सुरंग पर अब सिविल इंजीनियरिंग का काम चल रहा है। हालांकि, 2012 में सुरंग के लिए खुदाई करने के दौरान निकली छोटी नदी का जोरदार प्रवाह परेशानी पैदा कर रहा है।
सुरंग परियोजना में कार्यरत एक इंजीनियर ने बताया कि वर्तमान में काम की रफ्तार देखते हुए इसके सिविल इंजीनियरिंग के काम के दिसंबर 2019 तक पूरे होने की प्रबल संभावना है। उन्होंने कहा कि इसके साथ ही विद्युत और वायु संचार का काम भी चल रहा है। उन्होंने कहा कि सभी संभावनाओं को देखते हुए, सुरंग 2020 में मई-जून तक बनकर तैयार हो जाएगी।
यह सुरंग रक्षा मंत्रालय के संगठन 'सीमा सड़क संगठन' (बीआरओ) द्वारा 'स्ट्राबैग एजी' के संयुक्त उपक्रम 'एफ्कॉन्स' के साथ मिलकर तैयार की जा रही है। सुरंग की आधारशिला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 28 जून 2010 में यहां से निकट सोलांग घाटी में रखी थी। परियोजना की लागत राशि 1,495 करोड़ रुपए है।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि सुरंग के निर्माण की पिछली समय सीमा फरवरी 2015, यहां की कठोर भौगोलिक परिस्थितियों के कारण निकल चुकी है। यहां अतिकठोर मौसम होने के अलावा सुरंग के दक्षिणी द्वार पर काम सिर्फ छह महीने होता है। इंजीनियर ने स्वीकार किया कि सुरंग निर्माण की दूसरी समयसीमा 2019 भी सुरंग का निर्माण हुए बिना निकल जाएगी।
20 भूस्खलन और हिमस्खलन से निपटने के बाद सुरंग के दोनों द्वार बनाए जा सके हैं। यह सुरंग समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊंचाई पर बर्फ से ढंके रोहतांग दर्रे में स्थित है। रोहतांग का 70 फीसदी भाग गर्मियों में भी बर्फ से ढंका रहता है। लेकिन पांच साल की देरी होने के कारण परियोजना में 2,000-2,500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ेगा। इंजीनियरों के लिए हिमनद से भरी सेरी नदी को वश में करना भी एक चुनौती है।
एक अन्य इंजीनियर ने कहा कि इससे पहले हम 562 मीटर के क्षेत्र में सेरी नदी का सामना कर रहे थे। अब हम इसका प्रभाव मात्र 30 मीटर के दायरे में रखने में कामयाब हो सके हैं। बहुत जल्द हम इसे और सुरंग के अंदर रिसाव पर पूरी तरह काबू पा लेंगे।
पीर पंजाल क्षेत्र में स्थित रोहतांग दर्रा राजमार्ग सुरंग में दोतरफा यातायात के लिए पर्याप्त जगह है। इसे इस तरह से बनाया गया है कि इसके अंदर 80 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से वाहन चलाया जा सकेगा।