नई दिल्ली। एस एंड पी ग्लोबल रेटिंग्स ने भारत में पिछले कुछ साल में कर्ज लौटाने में बड़ी कंपनियों की चूक की परिस्थिति और कंपनी संचालन की कमजोरियों का उल्लेख करते हुए बड़े औद्योगिक घरानों को बैंक चलाने का लाइसेंस दिए जाने के सुझाव पर संदेह जताया है। उसने यह भी कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को ऐसे समय में गैर-वित्तीय क्षेत्र की निगरानी में मुश्किल होगी जब कि वित्तीय क्षेत्र की हालत कमजोर है। गौर तलब है कि पिछले सप्ताह, आरबीआई की एक आंतरिक समिति ने सिफारिश की है कि बड़े कार्पोरेट घरानों को बैंकों के प्रवर्तक बनने की अनुमति दी जा सकती है। साथ ही समिति ने निजी क्षेत्र के बैंकों में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी मौजूदा 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 26 प्रतिशत करने की भी सिफारिश की है।
आरबीआई के समूह ने यह सिफारिश की है कि आपस में जुड़ी इकाइयों के बीच कर्ज तथा बैंकों तथा अन्य वित्तीय संस्थानों के बीच निवेश को रोकने के लिये बैंकिंग नियमन कानून, 1949 में जरूरी संशेधन के बाद कंपनियों को बैंकों के नियंत्रण की अनुमति दी जा सकती है। इसके अलावा समूह ने बड़े औद्योगिक समूह के लिये निगरानी प्रणाली को मजबूत किये जाने का भी प्रस्ताव किया है। एस एंड पी ने कहा, ‘‘आरबीआई के समूह ने कंपनियों को बैंक खोलने की अनुमति देने में हितों के टकराव, आर्थिक शक्ति का संकेंद्रण तथा वित्तीय स्थिरता को लेकर चिंता जतायी है। निश्चित रूप से इसमें जोखिम है। बैंकों पर कंपनियों के स्वामित्व से संबंधित समूह के बीच कर्ज का वितरण, कोष का दूसरे कार्यों में उपयोग तथा साख को नुकसान का जोखिम बढ़ेगा। साथ ही इससे वित्तीय क्षेत्र में कंपनियों के चूक के मामले बढ़ने के भी आसार हैं।’’ रेटिंग एजेंसी ने कहा कि बड़ी कंपनियों के चूक को देखते हुए भारतीय कंपनियों का प्रदर्शन पिछले कुछ साल से कमजोर रहा है। मार्च 2020 की स्थिति के अनुसार कंपनी क्षेत्र का गैर-निष्पादित कर्ज (एनपीएल) कुल कॉर्पोरेट कर्ज का करीब 13 प्रतिशत है। जबकि मार्च 2018 में यह करीब 18 प्रतिशत था। एनपीए का यह स्तर बताता है कि भारत में अन्य देशों की तुलना में जोखिम ज्यादा है। हालांकि अमेरिकी रेटिंग एजेंसी एस एंड पी ने कहा कि आरबीआई समिति की बेहतर तरीके से प्रबंधित गैर-वित्तीय कंपनियों को पूर्ण रूप से बैंक लाइसेंस दिये जाने की सिफारिश से वित्तीय स्थिरता में सुधार की संभावना है।
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