बड़े कॉरपोरेट घरानों को बैंक खोलने की दी जाए छूट, RBI के पूर्व डिप्टी गवर्नर ने दिया सुझाव
बैंकिंग लाइसेंस के लिए आवेदन की निरंतर खुली व्यवस्था चार साल से चल रही है, लेकिन इसके बाद भी कोई गंभीर आवेदन प्राप्त नहीं हुआ है।
नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व डिप्टी गवर्नर आर गांधी ने कहा कि केंद्रीय बैंक को उन नियमों पर पुनर्विचार करने की जरूरत है, जो बड़े कॉरपेारेट घरानों को बैंकों का प्रवर्तक बनने से रोकते हैं। उन्होंने कहा कि अवश्यक सुरक्षा उपायों के साथ बैंकों में किसी एक निकाय को हिस्सेदारी 26 प्रतिशत से ऊंचा करने की मंजूरी दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था की आवश्यकताएं व आकांक्षाएं इस प्रकार की हैं, जिसको देखते हुए बैंकिंग क्षेत्र में बड़ी पूंजी के स्रोतों को प्रवेश देने पर विचार करने की जरूरत है। इससे बड़ी परियोजनाओं की मदद में आसानी हो सकती है।
उन्होंने संपूर्ण सेवा बैंकिंग मॉडल पर फिर ध्यान देने की भी वकालत की। गांधी रिजर्व बैंक के अपने कार्यकाल में महत्वपूर्ण बैंकिंग विनियमन और पर्यवेक्षण कार्यों की जिम्मेदारी संभाला करते थे। उन्होंने कहा कि केंद्रीय बैंक ने बैंकिंग लाइसेंस के लिए आवेदन की निरंतर खुली व्यवस्था चार साल से चल रही है, लेकिन इसके बाद भी कोई गंभीर आवेदन प्राप्त नहीं हुआ है। गांधी की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है, जब रिजर्व बैंक ने निजी बैंक के स्वामित्व तथा नियंत्रण को लेकर इस महीने की शुरुआत में एक आंतरिक कार्य समूह का गठन किया है। यह समूह प्रवर्तकों की हिस्सेदारी, हिस्सेदारी कम करने की आवश्यकताएं, नियंत्रण और मतदान के अधिकार जैसे पहलुओं पर विचार करेगा। गांधी ने भुगतान कंपनी ईपीएस द्वारा आयोजिक एक सेमिनार में कहा कि मेरे विचार में, स्पष्ट रूप से, एक प्रवर्तक या रणनीतिक निवेशक के लिए 26 प्रतिशत जैसी गंभीर हिस्सेदारी निश्चित रूप से बैंक और बैंकिंग उद्योग के दीर्घकालिक हित के लिए अच्छी होगी।
कोटक महिंद्रा बैंक को दी गई छूट का हवाला देते हुए, गांधी ने कहा कि रिजर्व बैंक ऐसे कदमों पर गौर कर सकता है। कोटक महिंद्रा बैंक के मामले में प्रवर्तक समूह को लंबी अवधि में 26 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने की अनुमति दी गई है, लेकिन उसके मतदान के अधिकार 15 प्रतिशत तक सीमित होंगे। उन्होंने स्वतंत्र निदेशकों की शक्तियों को बढ़ाने, निदेशक मंडल में प्रवर्तकों की सीटों को सीमित करने और निर्णय लेने को प्रभावित करने की उनकी क्षमता जैसे अन्य पहलुओं का भी सुझाव दिया। गांधी ने कहा कि प्राथमिक समस्या, जो हमने राष्ट्रीयकरण से पहले भी देखी थी, वह है कि हितों का टकराव, निधियों का विभाजन, जमाकर्ताओं के बजाये समूहों के हित के आधार पर बैंक के निर्णय जैसी चीजें होती हैं।
गांधी ने कहा कि अभी आरबीआई प्रवर्तक को 15 प्रतिशत और अन्य व्यक्तियों को 10 प्रतिशत तक हिस्सेदारी रखने की अनुमति देता है। संकटग्रस्त बैंकों के मामले में वह अधिक हिस्सेदारी की भी मंजूरी दे सकता है। पीएमसी सहकारी बैंक और येस बैंक जैसे मुद्दों पर एक सवाल के जवाब में गांधी ने कहा कि कंपनी संचालन को अधिक महत्व दिया जाना चाहिए। यह हमेशा स्वामित्व का स्तर ही नहीं है, जो परेशानी का कारण बन सकता है। उन्होंने कहा कि पेशेवर भी बाजार में अपने स्टैंड का लाभ उठा सकते हैं और बैंक स्थापित करने में मदद कर सकते हैं। हालांकि उन्होंने कहा कि इसके अनुभव कुछ मामलों में सफल रहा है और कुछ मामलों में नहीं। उन्होंने छोटे बैंकों का आपस में विलय कर बड़े बैंक बनाने से जुड़े एक सवाल पर कहा कि भारत भौगोलिक दृष्टि से भी बहुत बड़ा देश है और विविधता के नजरिये से भी। अत: हमें हर आकार के बैंकों की जरूरत है, जो हर किसी की जरूरतों को पूरा कर सकें।