बेंगलुरु। भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने भारतीय अर्थव्यवस्था के बुनियादी कारकों में स्पष्ट सुधार के बावजूद भारत की रेटिंग में सुधार नहीं करने को लेकर वैश्विक रेटिंग एजेंसियों की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि रेटिंग एजेंसियां भारत और चीन के मामले अलग मानदंड अपना रही हैं।
वैश्विक एजेंसियों ने भारत को सबसे निचले निवेश ग्रेड में रखा है, जिससे वैश्विक बाजारों में ऋण की लागत ऊंची पड़ती है, क्योंकि इससे निवेशकों की अवधारणा जुड़ी होती है। उन्होंने कहा, दूसरे शब्दों में कहा जाए रेटिंग एजेंसियों का चीन और भारत को लेकर नजरिया उचित नहीं है और यह असंगत है। एजेंसियों के इस रिकॉर्ड को देखते हुए-जिसे हमें खराब मानक कहते हैं- मेरा सवाल यह है कि, हम इन रेटिंग एजेंसियों के विश्लेषण को गंभीरता से क्यों लेते हैं।
दास भी जता चुके हैं विरोध
आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकान्त दास ने भी पिछले सप्ताह वैश्विक रेटिंग एजेंसियों के प्रति नाराजगी जताते हुए कहा था कि उनकी रेटिंग जमीनी सच्चाई से कोषों दूर है। उन्होंने रेटिंग एजेंसियों को आत्म निरीक्षण करने की हिदायत भी दी थी। उन्होंने कहा कि जो सुधार शुरू किए गए हैं उन्हें देखते हुए निश्चित ही रेटिंग में सुधार का मामला बनता है।
भारत कर रहा है पुरजोर विरोध
भारत पहले भी रेटिंग एजेंसियों के तौर तरीकों पर सवाल उठाता रहा है। भारत का कहना है कि भुगतान जोखिम मानदंडों के मामले में दूसरे उभरते देशों के मुकाबले भारत की स्थिति अधिक अनुकूल है। विशेषरूप से एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स पर सवाल उठे हैं, जिसने बढ़ते कर्ज और घटती वृद्धि दर के बावजूद चीन की रेटिंग को एए- रखा है। वहीं भारत की रेटिंग को कबाड़ या जंक से सिर्फ एक पायदान ऊपर रखा गया है।
मूडीज और फिच ने भी इसी तरह की रेटिंग दी है। इसके लिए इन एजेंसियों ने एशिया में सबसे अधिक राजकोषीय घाटे का उल्लेख किया है, जिससे भारत की सॉवरेन रेटिंग प्रभावित हुई है।
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