NPA को लेकर रघुराम राजन की संसदीय समिति को कही मुख्य बातें, सरकार में बैठे बैंकों के मददगारों पर साधा निशाना
संसदीय समिति ने रघुराम राजन से सवाल किया था कि NPA की असली वजह क्या है
नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन की तरफ से बैंकों के फंसे कर्ज (NPA) को लेकर संसदीय समिति को लिखे जबाव के सार्वजनिक होने से कई बड़े खुलासे हुए हैं। रघुराम राजन ने वरिष्ठ सांसद मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति की तरफ से पूछे गए प्रश्नों के उत्तर में NPA के कारण और उसे रिकवर करने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी दी है।
रघुराम राजन के मुताबिक इस वजह से बढ़ा NPA
संसदीय समिति ने रघुराम राजन से सवाल किया था कि NPA की असली वजह क्या है। इसके उत्तर में उन्होंने कहा कि बैंकों का अति उत्साह, धीमी ग्रोथ, सरकार की तरफ से कोई निर्णय करना और फिर उसे वापस लेना, प्रोमोटर्स और बैंकों के उत्साह में कमी और भ्रष्टाचार वजह है। उन्होंने बताया कि 2006-2008 के दौरान अच्छी आर्थिक ग्रोथ थी और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स तय बजट और समय में पूरे हो रहे थे। उन्होंने बताया कि उसी समय बैंकों ने गलती करना शुरू कर दी थी। उन्होंने पिछली ग्रोथ को देखते हुए अंधाधुंध कर्ज देना शुरू कर दिया था।
सरकार की निर्णय लेने की धमता धीमी होने का असर
रघुराम राजन ने कोल ब्लाक आबंटन का जिक्र करते हुए कहा कि सरकार के स्तर पर भी कोल ब्लाक आबंटन जैसी कई समस्याएं हुईं जिनमें निर्णय लेने की क्षमता को धीमा कर दिया। उन्होंने लिखा कि रुके हुए प्रोजेक्ट्स की लागत बढ़ने लगी। NPA की समस्या के लिए भ्रष्टाचार पर उन्होंने लिखा कि इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि कुछ भ्रष्टाचार था।
2013-14 में उठाए कदमों से 13% NPA की रिकवरी
रघुराम राजन ने बताया कि RBI ने NPA की रिकवरी के लिए जो कदम उठाए उनकी वजह से वित्त वर्ष 2013-14 के दौरान 30590 करोड़ रुपए की रिकवरी हुई थी, लेकिन उस समय NPA 236600 करोड़ रुपए था, यानि रिकवरी सिर्फ 13 प्रतिशत फंसे कर्ज की हुई थी।
NPA के लिए RBI कितना जिम्मेवार
संसदीय समिति ने रघुराम राजन से सवाल किया था कि क्या RBI की वजह से NAP पैदा हुआ है? इस सवाल के जवाब में उन्होंने लिखा कि बैंकर्स, प्रोमोटर्स और कई बार सरकार में बैठे उनके मददगार NPA के लिए RBI पर निशाना साधते हैं। लेकिन सच्चाई यही है कि NPA की समस्या बैंकों, प्रोमोटर्स और हालात की वजह से पैदा हुई है। बैंकों के वाणिज्यिक फैसलों की जगह RBI नहीं ले सकता है, बैंकों के कमर्शियल लेंडिंग कारोबार में RBI एक रैफरी की भूमिका निभाता है न कि खिलाड़ी की। बैंकों के बोर्ड में जो RBI के सदस्य होते हैं उनका कमर्शियल लेंडिंग में अनुभव नहीं होता और वह सिर्फ इतना ही कर सकती है कि बैंक कर्ज देते समय पूरी प्रक्रिया का पालन करें। उनकी वजह से सिर्फ इतना भ्रम रहता है कि रेग्युलेटर के पास पूरा कंट्रोल है।