नई दिल्ली। दालों का आयात केंद्रीय खुफिया एजेंसियों की जांच के घेरे में आ गया है। इसका मकसद जिंस के दाम में तेजी के लिये किसी भी प्रकार की कालाबाजारी तथा साठगांठ पर अंकुश लगाना है। खुफिया ब्यूरो (आईबी) और राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) ने व्यापारियों तथा जमाखोरों द्वारा इस प्रकार की अवैध गतिविधियों को लेकर आगाह किया है। पिछले वित्त वर्ष में करीब 55 लाख टन दाल का आयात किया गया। इसमें बड़ी मात्रा में आयात निजी व्यापारियों के जरिए किया गया।
दाल की खुदरा कीमत बढ़कर 200 रुपए प्रति किलोग्राम के आसपास पहुंचने के बीच यह कदम उठाया गया है। विभिन्न केंद्रीय एजेंसियां तथा आयकर विभाग जमाखोरी रोकने के लिये पिछले कुछ समय से छापे मार रहे हैं। सूत्रों ने कहा कि पिछले कुछ महीनों में तकरीबन 14,000 छापे मारे गये और 1.33 लाख टन दाल जब्त की गई। दाल की कीमतों में वृद्धि का कारण मांग-आपूर्ति में अंतर है। एक अनुमान के अनुसार जहां मांग 230 से 240 लाख टन है वहीं आपूर्ति करीब 170 लाख टन है। सूत्रों का कहना हर आने वाले वर्ष में दाल की मांग में 10 लाख टन की वृद्धि हो रही है। इसके कारण आयात जरूरी हो गया है। कालाबाजारी तथा अवैध व्यापार की संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि जमाखोर मुनाफा कमाने के लिए स्थिति का लाभ उठाने की कोशिश करते हैं। खुफिया एजेंसियां से आपस में तालमेल करने तथा जानकारी साझा करने को कहा गया है ताकि किसी भी प्रकार की गड़बड़ी पर अंकुश लगाया जा सके।
सूत्रों के अनुसार केंद्र ने अपने अधिकारियों को चुनिंदा देशों में भेजने का भी निर्णय किया है ताकि निजी व्यापारियों की भूमिका को सीमित कर दाल के आयात के लिए सरकार के स्तर पर अनुबंध का निर्णय किया जा सके। साथ ही बढ़ती कीमत पर अंकुश लगाने के लिये बफर स्टाक बढ़ाकर आठ लाख टन करने का भी फैसला किया गया है। इसके अलावा राज्य सरकारों से भी जमाखोरों तथा जिंस की कालाबाजारी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा है। तमिलनाडु तथा गुजरात जैसे राज्य जमाखोरों के खिलाफ काफी सक्रिय हैं। अन्य राज्यों को इस दिशा में और कदम उठाये जाने की जरूरत है। सूत्रों ने कहा कि खुफिया एजेंसियों ने पाया कि दाल की जमाखोरी करने वाले व्यापारी अवैध रूप से दूसरे राज्यों में दाल की जमाखोरी करते हैं ताकि जांच से बच सके।
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