नई दिल्ली। विदेश मंत्रालय को पैसे देने में कंजूसी करने के मामले में संसद की एक समिति ने वित्त मंत्रालय की खिंचाई की है। समिति का कहना है कि इससे विभिन्न देशों में विकास परियोजनाओं का काम प्रभावित हुआ और देश की विश्वसनीयता और प्रतिबद्धता पर उंगलियां उठीं हैं। विदेश मंत्रालय (एमईए) की स्थाई समिति ने कहा है सरकार से गई प्रतिबद्धताओं को निभाने के लिए एमईए को पर्याप्त धन न देने से भारत की विदेश नीति के उद्देश्य प्रभावित हो सकते हैं।
पैसे की कमी से खराब हो रही है देश की छवि
समिति ने मंत्रालय के समक्ष विशाल कार्य और चुनौतियों को देखते हुए भारतीय विदेश सेवा का छोटा आकार रखना अटपटी और चिंताजनक बात है। अपनी इन टिप्पणियों के संदर्भ में समिति ने भारत द्वारा अफगानिस्तान में संसद की इमारत के निर्माण में देरी का जिक्र किया। इसका कारण इस परियोजना से जुड़ी एजेंसियों के पास धन की कमी है। समिति ने अपनी चौथी रिपोर्ट में कहा है, समिति का यह मानना है कि मंत्रिमंडल की मंजूरी के साथ उच्च राजनीतिक स्तर पर जताई गई प्रतिबद्धता भारत की विदेश नीति का अभिन्न हिस्सा है। वित्त मंत्रालय के लिये ऐसे निर्णयों का सम्मान करना और इस प्रकार की प्रतिबद्धताओं के लिए कोष उपलब्ध कराना अनिवार्य होना चाहिए।
वित्त मंत्रालय ने पैसे देने में की कंजूसी
पिछले सप्ताह लोकसभा में पेश रिपोर्ट में विदेश मंत्रालय में संसाधन की कमी का जिक्र करते हुए समिति ने कहा कि 2014-15 में मंत्रालय ने 26,111 करोड़ रुपये मांगा था जबकि उसे 5,100 करोड़ रुपये के योजनागत व्यय के साथ 14,730 करोड़ रुपये ही दिये गये। आईएफएस (भारतीय विदेश सेवा) के छोटे आकार का जिक्र करते हुए समिति ने कहा कि विदेश सेवा अधिकारियों का काम चुनौतीपूर्ण और अनिवार्य है लेकिन मंत्रालय के पास उसके समाधान के लिए राजनयिकों की कमी है।
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